________________
स्पर्श सुख की भ्रामक मान्यता (खं-2-८)
१९७
उखाड़कर फेंक देना। फिर स्त्री के बैठने तक तो उस विचार को हम पेड़ जितना कर देते हैं। उसके बाद वे (विचार) वापस नहीं पलट सकते।
__ प्रश्नकर्ता : यह तय तो है कि मुझे विषय नहीं भोगना है, लेकिन कोई लड़की या कोई लड़का मुझ पर विषय भोगे, मुझे स्पर्श करे, बस में चढ़ते-उतरते, बैठते, कहीं पर भी, तो उसमें मुझे हर्ज नहीं। मुझे विषय नहीं भोगना है। ऐसे विचार आते हैं।
दादाश्री : तब तो अच्छा ही है न (!)
प्रश्नकर्ता : उस समय मेरी तो सेफ साइड है न, मैं तो विषय भोग ही नहीं रहा हूँ। मुझे तो स्पर्श करना ही नहीं है। लेकिन वह सामने से स्पर्श करे, तो फिर मैं क्या करूँ?
दादाश्री : ठीक है। साँप जान बूझकर छू जाए, तो उसमें हम क्या करें?(!) छूना कैसे अच्छा लगता है, पुरुष या स्त्री को? जहाँ निरी दुर्गंध ही है, वहाँ छूना कैसे अच्छा लगता है?
स्त्री का स्पर्श लगे विष समान प्रश्नकर्ता : लेकिन स्पर्श करते समय इसमें से कुछ भी याद नहीं आता।
दादाश्री : हाँ, वह याद कैसे आएगा लेकिन? उस समय तो स्पर्श करते वक्त, इतना अधिक पोइज़नस होता है वह स्पर्श, इतना अधिक पोइज़नस होता है, कि मन-बुद्धि-चित्त और अहंकार, सभी पर आवरण आ जाता है। मनुष्य मूर्छित हो जाता है। जानवर ही देख लो न, उस समय!
प्रश्नकर्ता : उस समय उसका फोर्स इतना जोरदार होता है कि उस वजह से वह मूर्छित हो जाता है।
दादाश्री : हं! ऐसा है न कि यह शराब तो पीने के बाद