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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
दुःख देखने को मिलता है न ? घर और बाहर, सभी ओर देखने को मिलता है। खुला ही है न!
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दादाश्री : अरे, इन प्रत्यक्ष दिखाई देनेवाले दुःखों को छोड़ो न। उन दुःखों को देख लेंगे थोड़ा बहुत । दादा के कहे अनुसार करेंगे तो, ठीक हो जाएगा। अपने महात्माओं को तो पच जाएगा। लेकिन एक वह (ब्रह्मचर्य की ) किताब रखनी पड़ेगी साथ में । तू नहीं रखता ?
प्रश्नकर्ता : रखता हूँ ।
दादाश्री : पढ़ता है न फिर । थोड़ा-थोड़ा पढ़ना पड़ेगा। उसे पढ़ने से, मन जो बहुत उछल-कूद कर रहा था, वह शांत हो जाएगा। तेरा तो बिल्कुल ठीक रहता है न?
प्रश्नकर्ता : ठीक है। वह किताब हेल्प करती है थोड़ीबहुत, लेकिन यह विज्ञान तो बिल्कुल जुदा ही रखता है।
दादाश्री : इस विज्ञान की तो बात ही अलग है। इस विज्ञान की तो बात ही क्या !
प्रश्नकर्ता : इस किताब की हेल्प लेते हैं न, लेकिन विज्ञान पर अधिक ज़ोर देते हैं हम |
दादाश्री : विज्ञान तो बहुत काम करता है ।
प्रश्नकर्ता : फिर भले ही कैसे भी संयोग आएँ वे इस किताब में नहीं है।
दादाश्री : तेरी गाड़ी राह पर आ गई है, अब। पहले तो मुझे लगता था, कि यह स्त्री बन जाएगा । लेकिन फिर बहुत टोका। नहीं तो क्या करूँ? मैंने कहा, 'अगले जन्म में स्त्री के कपड़े पहनने पड़ेंगे, साड़ी-ब्लाउज।' और क्या कहूँ ? अब सब निकल गया। चेहरे पर देख लेते हैं न हम ! उसके विचार वगैरह सब