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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
है, इसलिए सुख उत्पन्न होता है। यह जो चंचल भाग है, वह अचल हो जाता है, इसलिए आत्मा का स्वभाविक सुख उत्पन्न होता है। इस चंचलता की वजह से वह सुख प्लस-माइनस हो जाता है। दूसरा यह कि खुद के जो दोष हैं, उन्हें ज्ञाता-दृष्टा के तौर पर देखते रहने से दोष विलीन होते जाते हैं। इस तरह दो लाभ होते हैं।
सामायिक में तो, खुद का जो दोष है, उसी को रख देना! अहंकार हो तो अहंकार रख देना। विषय रस हो तो विषय रस रख देना, लोभ-लालच हो तो उसे रख देना। इन गाँठों को सामायिक में रख दी और उन गाँठों पर ज्ञाता-द्रष्टा रहे तो वे विलय हो जाएँगी। अन्य किसी तरीके से ये गाँठे खत्म हो पाएँ, ऐसी नहीं है। यह सामायिक इतनी आसान, सरल और सबसे ऊँची चीज़ है! यहाँ एक बार सामायिक करके जाए, तो फिर घर पर भी हो सकेगी! यहाँ सब के साथ बैठकर करने से क्या होता है कि सभी का प्रभाव पड़ता है और बिल्कुल पद्धतिपूर्वक अच्छा हो जाता है। इसके बाद आप घर पर करोगे तो चलता रहेगा।
विषय की गाँठ बड़ी होती है उसके निकाल की बहुत ही ज़रूरत है, वह कुदरती रूप से अपने यहाँ सामायिक में शुरू हो गया है! सामायिक करो, सामायिक से काफी कुछ विलय हो जाता है। कुछ करना तो पड़ेगा न? जब तक दादा हैं, तब तक सारा रोग निकालना पड़ेगा न? एकाध गाँठ ही भारी होती है, लेकिन जो भी रोग है तो उसे निकालना तो पड़ेगा न? उसी रोग की वजह से अनंत जन्मों से भटके हैं न? यह सामायिक तो किस हेतु से है कि अभी तक विषय भाव का बीज खत्म नहीं हुआ है और उसी बीज में से चार्ज होता है और उस विषय भाव के बीज को खत्म करने के लिए यह सामायिक है।
आपको विषय नहीं चाहिए, लेकिन विषय छोड़ते नहीं हैं न? हमें गड्ढे में नहीं गिरना हो फिर भी गिर जाएँ तो क्या