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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
दादाश्री : लोगों के कहने से हमें हो जाता है। हमारे कहने से मान्यता खड़ी होती है। क्योंकि आत्मा की हाज़िरी में मान्यता खड़ी होती है इसलिए दृढ़ हो जाती है और इसमें ऐसा है ही क्या ? मांस के लोथड़े हैं !
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प्रश्नकर्ता : एक बार मैं स्तन का ऑपरेशन देखने गया था। शुरू में देखे तो इतने सुंदर दिख रहे थे लेकिन ऑपरेशन करने के लिए चीरा तो कँपकँपी आ गई।
दादाश्री : कुछ भी सुंदरता होती ही नहीं है, मांस के लोथड़े ही हैं।
प्रश्नकर्ता : यह रोंग बिलीफ कैसे खत्म करें ?
दादाश्री : मैंने अभी कैसे खत्म की !
प्रश्नकर्ता : राइट बिलीफ से । बनिए की वह बात फिट हो गई मांस के लोथड़ेवाली ।
दादाश्री : बनिए को कहा जाए तो उसे स्त्री को नेकेड देखना अच्छा नहीं लगेगा । उसकी बुद्धि बहुत अच्छी कही जाएगी। मुझे तुरंत समझ में आ जाता है कि इसकी दृष्टि कितनी उच्च है। वाइफ के बारे में मांस के लोथड़े दिखते थे और हमेशा घिन आती थी उसे! साठ साल की उम्र में भी उसे घिन आती थी, वह अच्छा है न?! वर्ना घिन नहीं आती।
वह आवाज़, मन की ही
प्रश्नकर्ता : अंदर से जो शोर मचाते हैं कि 'देख लो। देख लो।' वह कौन है ? कोई स्त्री बाथरूम में नहा रही हो या कोई विषय भोग रहा हो, तब ?
दादाश्री : वह तो रोंग बिलीफवाला मन ही कहता है। बाद में प्राप्त हुआ ज्ञान, उस समय आकर रोक देता है कि ऐसा नहीं