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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
प्रश्नकर्ता : उसकी गाँठ नहीं है।
दादाश्री : उसकी गाँठ नहीं है, वह माल ही नहीं भरा है न! फिर वह माल निकलेगा कैसे? जो माल भरा है, वही निकलेगा!
प्रश्नकर्ता : इतना सोल्युशन बताया, वह बात तो ठीक है, लेकिन इसमें कमी क्या है? इसमें क्या कमी रह जाती है?
दादाश्री : जो माल भरा है वही निकल रहा है, इसमें कमी कहाँ रही? क्यों मांसाहारी डिश याद नहीं आती? और यह याद आता है, वह क्या है? क्योंकि यह माल भरा हुआ है।
इसलिए अब जब गाँठे फूटे हमें उसमें हर्ज नहीं है। गाँठों से तो कहना कि 'जितनी फूटनी हो उतनी फूट, तू ज्ञेय है और हम ज्ञाता हैं' ताकि हल आ जाए। जितना फूट चुका है उतना वापस नहीं आएगा। अब जो फूटता है वह नया है, लेकिन उस गाँठ का बढ़ना बंद हो गया। वर्ना वे गाँठें तो इतनी बड़ी, जमीकंद जितनी बड़ी होती हैं। किसी को तो मान की गाँठे घंटे भर में चार जगह फूटती हैं। इस ज्ञान के मिलने के बाद सभी गाँठे टूटने लगती हैं, वर्ना गाँठे टूटती नहीं हैं। यह ज्ञान नहीं मिला हो तब तक गाँठे प्रतिदिन बढ़ती ही जाती हैं! आत्मा प्राप्त हुआ मतलब निर्विषयी हुआ, फिर हमें उन गाँठों का निकाल करते रहना है।
आपको हम डाँटते क्यों नहीं हैं? हम जानते हैं कि गाँठे हैं, उनका निकाल तो करेगा न! जो गाँठे हैं, वे फूटे बगैर रहेंगी क्या? जिन चीज़ों की गाँठें नहीं हैं, वे गाँठें नहीं फूटेंगी। हममें गाँठें नहीं होती। हमें अगर शादी में ले जाओ न, तो भी हम इसी रूप में रहते हैं, यहाँ पर बुलाओ तो भी इसी रूप में रहते हैं क्योंकि हम निग्रंथ हो चुके हैं। विचार आते हैं और जाते हैं। कभी कोई विचार आकर खड़ा रह जाए, तब वह गाँठ कहलाती है।
यानी कि ऐसा है यह सब! आखिर में निग्रंथ होना है और