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नहीं चलना चाहिए, मन के कहे अनुसार (-2-५)
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करना, वह सारी समझ तो होती ही है। उसे पूछने नहीं जाना पड़ता कि मुझे क्या करना चाहिए?! ज्ञान से किया हुआ निश्चय, उसकी तो बात ही अलग है न! यह तो तुम लोगों का मन से किया हुआ है न?! इसलिए तुम्हें जानना चाहिए कि किसी दिन चढ़ बैठेगा। वापस मन ही चढ़ बैठेगा! जिस 'मन' ने इस ट्रेन में बिठाया, वही 'मन' ट्रेन में से गिरा सकता है। मतलब ज्ञान से बैठे हुए होओगे तो नहीं गिरा सकता।
प्रश्नकर्ता : अभी तक मन से किया हुआ निश्चय, वह ज्ञान से हो जाए उसके लिए क्या करना चाहिए?
दादाश्री : अब ज्ञान से आपको उसे फिट कर देना है, मतलब ब्रह्मचर्य की डोर अपने हाथ में आ जानी चाहिए। फिर मन भले ही कितना भी शोर मचाए फिर भी उसका कुछ चलेगा नहीं। दो-पाँच साल तक तू विरोध करे और वह कहे, 'शादी कर, शादी कर'। और सभी संयोग विपरीत हो जाएँ, फिर भी हमें विचलित नहीं होना है। क्योंकि आत्मा अलग है, सभी से। सभी संयोग, वियोगी स्वभाव के है।
प्रश्नकर्ता : निश्चय अगर ज्ञान से हुआ हो तो मन उसका विरोध करेगा ही नहीं न, ऐसा?
दादाश्री : नहीं। नहीं होगा। निश्चय अगर ज्ञान से हुआ हो तो उसकी फाउन्डेशन(नीव) ही अलग तरह की होती है न! उसके सभी फाउन्डेशन आर.सी.सी. के होते हैं। और ये तो रोड़े का, अंदर कंक्रीट किया हुआ। फिर दरारें पड़ ही जाएँगी न?
आप्तपुत्रों की पात्रता प्रश्नकर्ता : आपकी दृष्टि में कैसा है? ये लोग (आप्तपुत्र) किस तरह से तैयार होने चाहिए?
दादाश्री : सेफ साइड! और किसी चीज़ का ज्ञान नहीं हो,