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पछतावे सहित प्रतिक्रमण (खं-2-७)
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प्रश्नकर्ता : लेकिन कई बार तो बहुत सारे प्रतिक्रमण करते हैं और फिर से प्रतिक्रमण करना पड़े तो बहुत गुस्सा आता है कि ऐसा क्यों हो जाता है?
दादाश्री : जब अंदर बिगड़ जाए, उस समय तो प्रतिक्रमण करके धो देना चाहिए और फिर रूबरू आकर दादा से कह देना चाहिए कि 'इस तरह हमारा मन बहुत बिगड़ गया था। दादा, आपसे कुछ छिपाकर नहीं रखना है।' ताकि सब खत्म हो जाए। यहीं के यहीं दवाई दे देंगे। अन्य किसी के प्रति दोष हुआ होगा न तो हम धो देंगे।
जहाँ इन्टरेस्ट, वहाँ करो प्रतिक्रमण प्रश्नकर्ता : बार-बार दृष्टि आकृष्ट हो जाती है, एक ही जगह पर दृष्टि आकृष्ट होती है, वह तो इन्टरेस्ट(रुचि) हो तभी न! क्या ऐसा नहीं कह सकते?
दादाश्री : इन्टरेस्ट ही है न? इन्टरेस्ट के बिना तो दृष्टि आकृष्ट होगी ही नहीं न!
प्रश्नकर्ता : अंदर रुचि है तो सही। दृष्टि आकृष्ट हो जाए तो उसके लिए प्रतिक्रमण होता है। फिर रात होते ही वापस दृष्टि उधर ही जाती है। रुचि हो जाए, तो उसका प्रतिक्रमण हो जाता है, वह चेप्टर(प्रकरण) खत्म हो जाता है। वापस पाँच-दस मिनट तक असर रहता है। तब लगता है कि यह क्या गड़बड़ है?
दादाश्री : उसे वापस धो देना चाहिए। इतना ही, बस। प्रश्नकर्ता : बस इतना ही? बाकी मन में कुछ नहीं रखना
दादाश्री : यह माल हमने भरा है और ज़िम्मेदारी अपनी है। इसलिए हमें देखते रहना है, धोने में कमी नहीं रह जानी चाहिए।