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नहीं चलना चाहिए, मन के कहे अनुसार (खं-2-५)
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दादाश्री : तेरा मन तो क्या कहेगा, 'यह पढ़ाई भी पूरी नहीं करनी है।' ऐसा कहे तो क्या वैसा करेगा?
प्रश्नकर्ता : दादा कहेंगे, वैसा करूँगा।
दादाश्री : क्या हम तेरा अहित करेंगे? तुम लोग अपना अहित कर सकते हो लेकिन हम से ऐसा नहीं होगा न! हमारे टच में आए इसलिए आपका हित करने के लिए ही हम सभी दवाई दे देते हैं। फिर भी अगर मन नहीं सुधरे तो फिर वह उसका हिसाब। सभी तरह की दवाईयाँ देते हैं और दवाईयाँ तो ऐसी देते हैं कि सबकुछ ठीक हो जाए। फिर भी यदि खुद टेढ़ा हो तो पीएगा ही नहीं न!
प्रश्नकर्ता : नाक दबाकर मुँह में डाल देना।
दादाश्री : नाक कौन दबाएगा? यह नाक दबाने से हो जाए, ऐसा नहीं है।
तू नहीं कह रहा था कि मुझे स्कूल जाना अच्छा नहीं लगता? निश्चय तो होना ही चाहिए न कि मुझे स्कूल पूरा करना है। फिर ऐसा करना है, वैसा करना है। फिर हमेशा के लिए सब के साथ संग में रहना है। ब्रह्मचर्य पालन करना है। ऐसी अपनी योजना होनी चाहिए। यह तो, बिना योजना के जीवन जीने का क्या अर्थ है?
प्रश्नकर्ता : कॉलेज में जाना तो मुझे भी अच्छा नहीं लगता।
दादाश्री : कॉलेज में जाना ही पड़ेगा न! सभी के मन का समाधान करना ही चाहिए न? फादर-मदर, उनके मन का समाधान करके मोक्ष में जाना है। वर्ना तू कैसे मोक्ष जा पाएगा? यों बलवा करके घर में से भाग जाओगे तो क्या पूरा हो जाएगा?! तो क्या मोक्ष हो जाएगा? यानी तरछोड़ (तिरस्कार सहित दुत्कारना) नहीं लगनी चाहिए।
प्रश्नकर्ता : इस ब्रह्मचर्य के बारे में कर्म का सिद्धांत लागू होता है?