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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
दादाश्री : 'सुननी ही नहीं है,' यह तो बहुत समझदारी की बात कर रहा है लेकिन अगर छः महीने तक लगातार ऐसा कहे, तब तू क्या करेगा वहाँ ? जहाँ छोड़े ही नहीं, वहाँ ? अब, वह जब ऐसी बातें रखेगा, तब देह भी नहीं छोड़ेगी। देह भी उसकी ओर मुड़ जाएगी। मतलब सभी एक ओर हो जाएँगे। वे सब तुझे फेंक देंगे। इसलिए कह ही देना, 'इतनी चीजें हमारे नियम से बाहर है, उनमें तुझे कुछ भी नहीं करना है।'
प्रश्नकर्ता : तो फिर वहाँ क्या स्टेप कैसे लें?
दादाश्री : स्ट्रोंग रहना। मैं कहता हूँ कि यदि ऐसा निकले तो आप छोटी से छोटी बात के लिए भी स्ट्रोंग रहना। ज़रा सी भी उसकी मान लोगे तो वह आपको फेंक देगा, इसलिए उसे कह देना कि 'इतनी बात में तुझे हमारे नियम से बाहर बिल्कुल भी अलग नहीं चलना है। छोटी से छोटी बात में भी जागृति रखो वर्ना फिर वह ढीला पड़ जाएगा।
प्रश्नकर्ता : फिर अपने दूसरे सिद्धांत?
दादाश्री : इतना करो तो बहुत हो गया! देखो वापस दूसरे पूछ रहा है! बाकी का फिर चला लेंगे। तुझे करेले की सब्जी पसंद हो और मन कहे कि, 'ज़्यादा खाओ' और ध्येय को नुकसान नहीं करता हो और थोड़ा ज़्यादा खा लिया तो चला लेंगे! ऐसा नहीं कहा है तुम लोगों को?
प्रश्नकर्ता : हाँ, ब्रह्मचर्य का सिद्धांत, वह अपना इन्डीविज्युअल (व्यक्तिगत) हुआ। लेकिन जब दो इंसानों का व्यवहार आता है, तब मन सबकुछ बताता है, लेकिन अगर ज्ञान से देखने जाएँ तो सबकुछ ऑन द स्पोट खत्म हो जाएगा सब। लेकिन व्यवहार पूरा करना पड़े, ऐसा है, ज़िम्मेदारी है और उसके रिजल्ट्स (परिणाम) दूसरे को स्पर्श करते हैं। वहाँ मन कुछ बताए तो क्या करना चाहिए?