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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
प्रश्नकर्ता : हाँ। यानी कि चंद्रेश को ही चुभता है कि 'ऐसा नहीं होना चाहिए।'
दादाश्री : चंद्रेश को चुभे उसमें तुझे क्या है? चंद्रेश से कहना, 'ले अब ले स्वाद!' ले तेरा किया तू भुगत। हमें कुछ नहीं कर सकता। तुम्हारी तो उम्र छोटी है तो अभी परेशानीवाले स्टेशन आएँगे। निरी झाड़ी और जंगल सारा!
स्त्री विषय, वह गलत चीज़ है, ऐसा तुझे निरंतर रहा करता
है
प्रश्नकर्ता : निरंतर। दादाश्री : और अभिप्राय भी वही रहता है? प्रश्नकर्ता : वही।
दादाश्री : अब पहले माना था कि स्त्री विषय अच्छा है, इसीलिए तो अंदर गाँठे भर गई हैं, अब वे खत्म हो जाएँगी धीरेधीरे। नया माल नहीं भर रहा है, इसलिए तुझे जोखिम नहीं रहा न! नया भर सके, अपना ज्ञान ऐसा है ही नहीं न!
सत्संग में भी सतर्क रहना है जिन स्त्री-पुरुषों में विकार नहीं हों, वे पवित्र।
तुम जितना काम का बदला दोगे, उससे अधिक बदला तुम्हें मिलेगा, इसलिए यह करना है। जगत् कल्याण होगा और अपना भी। वर्ना इसमें तो कोई माल ही नहीं था। नमक-मिर्च भी नहीं था न! वह तो अब जो है, नए सिरे से बड़ी बड़ी दुकानें खुली
प्रश्नकर्ता : विषय से संबंधित खास ध्यान रखना पड़ता है। गाँवों में जाते हैं न, वहाँ जेन्ट्स से अधिक लेडीज़ होती हैं हमेशा। ये गाँवों में सत्संग में जाते हैं न तो सत्तर प्रतिशत तो लेडीज़