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नहीं चलना चाहिए, मन के कहे अनुसार (खं-2-५)
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दादाश्री : लॉ-बुक तो वही की वही। ये पक्षकार कैसे इंसान हैं? विरोधी के पक्षकार! अब समझ जाओ। वर्ना चलेगा नहीं इस दुनिया में।
मन चलाए, मंडप तक... देखो न, चार सौ साल पहले कबीर जी ने कहा है, कितने सयाने इंसान! कहते हैं, 'मन का चलता तन चले, ताका सर्वस्व जाए।' सयाने नहीं थे कबीरजी? और यह तो मन के कहे अनुसार चलते रहते हैं। अगर मन कहे कि 'इससे शादी करो।' तो शादी कर लोगे?
प्रश्नकर्ता : नहीं। ऐसा नहीं होगा।
दादाश्री : अभी तो वह बोलेगा। ऐसा बोलेगा, उस समय क्या करोगे तुम? ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करना हो तो स्ट्रोंग रहना पड़ेगा। मन तो ऐसा भी कहेगा और तुमसे भी कहलवाएगा। इसीलिए मैं कह रहा था न कि 'कल सुबह शायद तुम भाग भी जाओगे।' उसका क्या कारण है? मन के कहे अनुसार चलनेवाले का भरोसा ही क्या? क्योंकि तुम्हारा खुद का चलन नहीं है। खुद के चलनवाला ऐसा नहीं करेगा।
इसलिए मैं तुम से कह रहा था कि अंदर मन कहेगा, 'अभी तो, यह लड़की अच्छी है, और अब हर्ज नहीं है। दादाश्री का आत्मज्ञान मिल गया है, हमें। अब कुछ बाकी नहीं रहा। उसने भी शादी कर ली है, अब पुरावे(एविडेन्स) में खास कुछ कमी नहीं है। चलो न, अब इसमें कहाँ गलती हो गई वापस?! ऊपर से फादर का आशीर्वाद बरसेगा।' अंदर ऐसा बताएगा और अगर तू बहक गया तो वह फजीहत करेगा। हम तो तुम सब से कहते हैं कि 'भाग जाओगे।' तब तू कहता है, 'भागकर हम जाएँ कहाँ ?' लेकिन किस आधार पर तुम भागे बिना नहीं रहोगे? क्योंकि तुम मन के कहे अनुसार चलते हो।