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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) प्रश्नकर्ता : 'मैं ऐसा कर रहा हूँ' ऐसा अभी भी पता नहीं चल रहा है, समझ में नहीं आ रहा।
दादाश्री : समझ में ही नहीं आ रहा? कब आएगा समझ में? दो-तीन जन्मों के बाद समझेगा? शादी कर लेगा तो वह समझा देगी। 'समझ में नहीं आ रहा है,' कह रहा है?
यह बैल गाड़ी का दृष्टांत बताया, फिर निश्चयबल की बात की। जो अपना तय किया हुआ, नहीं करने दे, क्या उसकी सुननी चाहिए? माँ-बाप की नहीं सुनते और मन की कीमत ज़्यादा मानते हैं, ऐसा?
प्रश्नकर्ता : लेकिन मुझे सामायिक में कुछ दिखता ही नहीं
दादाश्री : क्या देखना होता है, जो दिखेगा?
प्रश्नकर्ता : आप कहते हैं न कि 'चार साल तक का दिखता है सारा।'
दादाश्री : वह ऐसे नहीं दिखता। वह तो, गहरा उतरने को कहते हैं, तब दिखता है।
जो मन के कहे अनुसार चलें, वे सब बैलगाड़ी जैसे ही हैं न?! फिर दिखेगा कैसे? 'देखनेवाला' अलग होना चाहिए, खुद के निश्चयबलवाला! ___अभी तक मन का कहा ही किया है। उसी की वजह से यह सारा आवरण आया है।
प्रश्नकर्ता : सामायिक कर रहे हों और मन सामायिक करने के लिए मना करे, तब क्या वह उदयकर्म है?
दादाश्री : उदयकर्म कब कहलाता है कि निश्चय होने के बावजूद निश्चय को टिकने नहीं दे, तब उदयकर्म कहलाता है।