________________
नहीं चलना चाहिए, मन के कहे अनुसार (खं-2-५)
१५७
दादाश्री : कैसे इंसान हो? अपनी इच्छा अनुसार नहीं चलने दे। तो फिर खुद का चलन ही नहीं है।
प्रश्नकर्ता : सामायिक करने की इच्छा इतनी स्ट्रोंग नहीं है।
दादाश्री : ओहो, तब तो यह सारा धर्म करने की इच्छा भी नहीं है। इसमें भी स्ट्रोंग नहीं है न फिर!
सामायिक मतलब अड़तालीस मिनट की चीज़ है। अड़तालीस मिनट तक ठिकाने नहीं रह सकते, तो ब्रह्मचर्य का पालन कैसे कर सकेगा? उसके बजाय तो चुपचाप शादी कर ले तो अच्छा।
यह ब्रह्मचर्य पालन करते हैं, तो उसमें ब्रह्मचर्य यानी खुद का निश्चयबल। कोई डिगा न सके, ऐसा। जो किसी के कहे अनुसार चले, वह ब्रह्मचर्यपालन कैसे कर सकेगा?
ब्रह्मचर्यवाला इंसान तो कैसा होता है? अरे!! स्ट्रोंग पुरुष! उच्च मनोबलवाला! वे कहीं ऐसे होते होंगे? इसीलिए तो मैं बारबार कहता हूँ कि, 'तुम चले जाओगे, शादी कर लोगे।' तब तुम कहते हो कि 'आप ऐसे आशीर्वाद मत दीजिए!' मैंने कहा, 'मैं आशीर्वाद नहीं दे रहा हूँ। तुम्हारा भेस दिखा रहा हूँ!' अभी से यदि सावधान नहीं हो जाओगे और खुद के हाथ में लगाम नहीं ले लोगे तो खत्म! गाड़ी कहाँ ले जा रहे हो? तब कहता है, 'बैल जहाँ ले जाए वहाँ!' बैल जिस दिशा में जाए, उस दिशा में गाड़ी जाने देगा कोई? बैल इस ओर जा रहा हो तो मारठोककर, कैसे भी करके, इस ओर मोड़ लेता है। खुद के तय किए रास्ते पर ही ले जाएगा न? ।
प्रश्नकर्ता : तय किए रास्ते पर ही ले जाएगा।
दादाश्री : जबकि तुम लोग तो बैल की इच्छानुसार गाड़ी चलाते हो। 'वह इस ओर जा रहा है तो मैं क्या करूँ?' कहते हैं! उससे अच्छा तो शादी कर लो न शांति से! गाड़ी इस ओर