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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
प्रश्नकर्ता : बिल्कुल।
दादाश्री : यह मन, यह तो चंद्रेश का है। तुझे उस मन के कहे अनुसार नहीं चलना है। जो मन के कहे अनुसार चले न, तो उसका ब्रह्मचर्य नहीं टिकेगा, कुछ भी नहीं टिकेगा। बल्कि अब्रह्मचर्य हो जाएगा। मन का और हमारा क्या लेनादेना? ___अब किसी के गहने पड़े हुए हों और मन कहे कि कोई नहीं है, ले लो न! लेकिन हमें समझना चाहिए। खुद का चलन नहीं रहे, तो मन चढ़ बैठता है।
प्रश्नकर्ता : खुद को समझ में ज़रूर आता है कि ये दो घंटे व्यर्थ चले गए।
दादाश्री : चले गए, वह अलग चीज़ है। वह तो अजागृति के कारण। लेकिन फिर भी मन चढ़ नहीं बैठेगा।
विरोधी के पक्षकार? प्रश्नकर्ता : एक बार जब हम सत्संग में से उठकर बाहर चाय पीने गए थे, तब आपने कहा था कि बाकी सभी चीज़ों में ऐसे छूट रखना लेकिन सिर्फ ब्रह्मचर्य के बारे में ही मन की मत सुनना।
दादाश्री : और बाकी बातों में सुनोगे? यदि तुम्हें टेस्ट आता हो तो मानो न! मुझे क्या आपत्ति है? यह तो, अगर ब्रह्मचर्य के बारे में सुनोगे, तब भी मुझे आपत्ति नहीं।
यह तो, आप ब्रह्मचर्य में स्ट्रोंग(दृढ़) रहो, इसलिए कहना चाहता हूँ। ध्येय को नुकसान न पहुँचाए, इस हेतु से ऐसा कहा था। उसे लेकर अगर तुम ऐसा कहो कि 'बाकी सब चीज़ों में आराम से मन की सुनना।' तो तुम्हारा काम हो गया! क्या पाओगे इससे? कैसी वकालत कर रहे हो?
प्रश्नकर्ता : खुद की लॉ-बुक(कानूनी किताब) में ले जाते हैं।