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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
प्रश्नकर्ता : लेकिन यह तो बहुत बड़ा रोग है। यह तो फिर वापस बिल्ली मटकी में मुँह डाले न, तो उसे लेकर घूमना पड़ेगा फिर।
दादाश्री : उसमें तो चारा ही नहीं है न। बाद में कौन निकालेगा? बीत गई यह पूरी जिंदगी! आ फँसे भई आ फँसे। दु:ख अच्छा लगता हो तो फिर उसका कोई उपाय ही नहीं है न!
प्रश्नकर्ता : दु:ख अच्छा नहीं लगता। लेकिन वह विषय का इन्टरेस्ट अच्छा लगता है, उसमें कहाँ दु:ख है?
दादाश्री : नहीं, उसका फल ही दु:ख आता है न! जिसका फल दुःख आए, वह चीज़ अच्छी नहीं लगनी चाहिए। वह दुःख ही है।
प्रश्नकर्ता : ऐसे विचार आ गए, फिर बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता कि 'ये ऐसे विचार क्यों आए?'
दादाश्री : वह तो मटकी में मुँह डालने के बाद न? फँसने के बाद आएँगे विचार! अरे, एक बार विचारों को उखाड़करनिकालकर कहना, 'इन सभी लोगों ने शादी की ही हैं न।'
प्रश्नकर्ता : शादी के विचार आते हों तो अच्छा है। एक बार शादी कर ले। ये तो विषय के विचार आते हैं। इसमें जोखिमदारी कितनी है!! फिर ऐसा विचार आता है कि दादा तो कहते हैं कि ऐसा नहीं चलाएँगे, तो क्या होगा मेरा?
दादाश्री : क्या होनेवाला है? क्या इस नर्मदा का गोल्डन ब्रिज गिर गया है? गोल्डन ब्रिज बनानेवाले चले गए, सभी चले गए! क्या हो जाएगा? क्या वह गिर जाएगा? अपनी तैयारी होनी चाहिए।
प्रश्नकर्ता : लेकिन तैयारी में अंदर पोल (ढील) बहुत हो