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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
प्रश्नकर्ता : नदी को क्या नुकसान होगा? दादाश्री : तब किसे नुकसान होगा? प्रश्नकर्ता : जो मरा, उसे होगा।
दादाश्री : ऐसा? तब तू कह रहा है न, कि 'अभी भी मुझे विषय की गाँठ फूटती है?'
प्रश्नकर्ता : इसका क्या कारण है?
दादाश्री : वह तो तुझे ढूँढ निकालना है। एक तो आज्ञा में नहीं रहते और वजह पूछते हो?!
शास्त्रकारों ने तो एक ही बार के अब्रह्मचर्य को मरण कहा है। ब्रह्मचारियों के लिए क्या कहा है, कि एक बार अब्रह्मचर्य होने से तो मरण अच्छा। मर जाना लेकिन अब्रह्मचर्य मत होने
देना।
नर्क में जितनी गंदगी नहीं है, उतनी गंदगी विषय में है। लेकिन इस जीव को अभानता से समझ में नहीं आता। सिर्फ ज्ञानीपुरुष भान में होते हैं, इसलिए उन्हें यह गंदगी आरपार दिखती है। जिनकी दृष्टि इतनी विकसित हो, उन्हें राग कैसे उत्पन्न होगा?
कर्म का उदय आए और जागृति नहीं रहती हो, तब ज़ोरज़ोर से ज्ञान के वाक्य बोलकर जागृति लाए और कर्मों का विरोध करे तो वह सब पराक्रम कहलाता हैं। स्व-वीर्य को स्फुरायमान करना, वह पराक्रम है। पराक्रम के सामने किसी की ताकत नहीं
प्रश्नकर्ता : बहुत 'अटैक' आ जाए तो हिल जाता है।
दादाश्री : इसी को कहते हैं कि अपना निश्चय कच्चा है। निश्चय कच्चा नहीं पड़े, यही हमें देखना है। 'अटैक' तो, संयोग होता है इसलिए आता है। यदि गंध आए तो उसका असर हुए