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दृढ़ निश्चय पहुँचाए पार (खं-2-३)
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आँखों को कुछ ठीक लगे तो आकृष्ट होती है, इससे कोई गुनाह नहीं लगता। वह तो प्रतिक्रमण कर लेने से धुल जाता है। वह पिछले जन्म की गलती है और जहाँ वैसा हिसाब होगा तभी वहाँ जाएगा, वर्ना जाएगा ही नहीं कभी भी। वह मिल जाए तभी आकर्षण होता है। वह तो प्रतिक्रमण से धुल जाएगा। उसका और क्या हिसाब है? वह तो, थ्री विज़न रखने के बावजूद भी दिखता है कि आकर्षण हो रहा है। समझ में आए ऐसी बात है या नहीं?
प्रश्नकर्ता : समझ में आ रहा है न! मुझे ऐसा था कि इतना सुंदर ज्ञान मिला है और छूटने के ऐसे सब सुंदर संयोग मिले हैं, तो यदि प्योर हो जाएँ इस एक ही चीज़ में, तो बहुत अच्छा रहेगा, ऐसा।
दादाश्री : हाँ, लेकिन प्योर ही है। निश्चय है तब तक प्योर है और ऐसे इम्प्योरिटी माना, वह भी गलती है अपनी। निश्चय अपना था इसलिए प्योर रहता है। फिर जो आकर्षण होता है, उसके उपाय हैं! आकर्षण भी कैसा, फिसल गए तो क्या कोई गुनाह है? फिर से खड़े होकर चलने लगना। कपड़े बिगड़ गए हों तो धो लेना। हम फिसल पड़ें तो गुनाह है, फिसल गए तो गुनाह नहीं।
प्रश्नकर्ता : मुझे अंदर यों ऐसा खेद रहा करता है कि ऐसा सुंदर ज्ञान मिला है, फिर भी अभी तक ऐसी स्थिति क्यों अनुभव कर रहा हूँ?
दादाश्री : नहीं, वह तो सभी को ऐसा होता है। वह तो बल्कि यदि हम प्रतिक्रमण से धो डालें तो दिन बदलेंगे। वर्ना बाकी रहा, ऐसा कहा जाएगा। पिछले जन्म में जो हस्ताक्षर किए थे, वे छोड़ेंगे नहीं न!