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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
झुकोगे, तो फिर इस गद्दी पर बैठ जाओ।' तब कहा, 'नहीं। मुझे ऐसी गद्दी नहीं चाहिए। मैं चितौड़ का राणा नहीं झुकूँगा ।'
प्रश्नकर्ता : अभी भी प्रकृति परेशान करती है। लेकिन जब अंदर असल में लाल-लाल हो जाता है, तभी दादा का असल अनुभव होता है।
दादाश्री : वह तप पूरा करना पड़ेगा। उसके बाद आत्मा का अपार आनंद रहेगा। इस बाड़ को पार किया कि फिर अपार आनंद।
विषय के विष की परख क्यों नहीं होती ?
प्रश्नकर्ता : तो क्या ऐसा है कि विषय समझ से जाएगा ? जैसे-जैसे समझ बढ़ती जाएगी, वैसे विषय चला जाएगा।
दादाश्री : समझ से ही चला जाएगा। यदि ऐसा समझ में आ गया न कि 'यह साँप ज़हरीला है और अगर काट लेगा तो तुरंत मर जाएँगे,' तो फिर वह ज़हरीले नाग से दूर ही रहेगा। उसी तरह इसमें भी समझ में आ जाना चाहिए।
प्रश्नकर्ता : हाँ। लेकिन वह समझ में क्यों नहीं आता ? दादाश्री : अनादिकाल से आराधन किया हुआ है न, उसी को सत्य माना है न।
प्रश्नकर्ता : वह ठीक है, लेकिन वह आराधन किया हुआ और आज का ज्ञान, उसमें अभी भी क्यों युद्ध चल रहा है ? दादाश्री : विस्तार से सोचने की खुद की शक्ति ही नहीं
है न।
प्रश्नकर्ता : शक्ति नहीं है या उसकी इच्छा नहीं है ? दादाश्री : नहीं, शक्ति नहीं है। इच्छा तो है पूरी-पूरी।