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दृढ़ निश्चय पहुँचाए पार (खं-2-३)
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बिना रहता नहीं है न? इसलिए अपना निश्चय होना चाहिए कि मुझे उसे छूने नहीं देना है। निश्चय होगा तो कुछ नहीं होगा। जहाँ निश्चय है, वहाँ सबकुछ है। यहाँ पुरुषार्थ का बल है। आत्मा होने के बाद पुरुषार्थ हुआ, उसका यह बल है। वह बहुत ग़ज़ब का बल है। फिर भी हम क्या कहते हैं कि अपने में जो कमज़ोरी है उसे जानो, लेकिन उसके सामने शूरवीरता रहनी चाहिए, तो कभी न कभी वह कमज़ोरी जाएगी। शूरवीरता होगी तो एक दिन जीत जाओगे, लेकिन खुद को निरंतर चुभना चाहिए कि यह गलत है।
अन्य धर्मों में भी ज्ञान के बगैर भी इतना ज़ोर तो लगाते हैं कि, 'अरे, यार जाने दे, हिम्मते मर्दा तो मददे खुदा' जबकि हमारे पास तो ज्ञान है, तो क्या फिर समझ में नहीं आना चाहिए? 'हिम्मते मर्दी तो मददे खुदा' अगर ऐसा बोले न, तो शूरवीरता आ जाती है उसमें तो। अपना तो यह विज्ञान है। विज्ञानी में हिम्मत नहीं हो, ऐसा हो ही कैसे सकता है? हमें तो इतना कहनेवाला भी कोई नहीं मिला था। आप तो बड़े पुण्यशाली हो कि आपको तो ज्ञानीपुरुष मिले हैं, वर्ना तो गलत रास्ता दिखानेवाले लोग मिलते हैं।
___ निश्चय मांगे सिन्सियारिटी अभी तो उम्र कम है न, इसलिए मोहनीय परिणाम अभी तक आए नहीं हैं। उन सभी कर्मों के उदय तो आए ही नहीं न? इसलिए अभी से ही अगर हमने यह सेट कर रखा हो तो कोई परेशानी नहीं आएगी। यह ज्ञान, यह निश्चय सबकुछ हम ऐसे सेट करके रखें ताकि इस मोहनीय परिणाम में भी हमें डगमगा नहीं दे। इस काल की बड़ी विचित्रता यह है कि इस काल के सभी लोग महा मोहनीयवाले हैं। इसलिए उन्हें 'कैसे हो?' पूछना। लेकिन उनसे नज़र नहीं मिलानी चाहिए, नज़र मिलाकर बातचीत भी नहीं करनी चाहिए। इस काल की विचित्रता है, इसलिए कह रहे हैं। क्योंकि सिर्फ यह विषयरस ही ऐसा है कि जो(हमारा) सर्वस्व गँवा दे। सिर्फ अब्रह्मचर्य ही महा-मुश्किलवाला है। नहीं तो