________________
११२
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
पालन होना चाहिए न?
नहीं चल सकता अपवाद ब्रह्मचर्य में ये भाई सच कह रहे हैं कि ऐसे अगर डगमगाए तो उसका क्या अर्थ है ?! डगमगाने का इतना ही कारण है कि आज के इन सब के हिसाब से हम करने जाते हैं, दौड़ते हैं लेकिन दौड़ा तो जाता नहीं, फिर वापस थोड़ी देर बैठे रहना पड़ता है। क्या?
प्रश्नकर्ता : ब्रह्मचर्य व्रत लेने के बाद किसी का डगमगा रहा हो तो?
दादाश्री : डगमगानेवाले को तो व्रत लेना ही नहीं चाहिए और व्रत लेगा तो उसमें बरकत आएगी भी नहीं। डगमगाए तो हम नहीं समझ जाएँगे कि 'कमिंग इवेन्ट्स कास्ट देर शैडोज़ बिफोर?!'
ब्रह्मचर्य में अपवाद रखा जाए, वह ऐसी चीज़ नहीं है क्योंकि इंसान का मन पोल (दूसरा उल्टा रास्ता) ढूँढता है, किसी जगह पर अगर इतना सा भी छेद हो तो मन उसे बड़ा कर देता है!
प्रश्नकर्ता : ऐसे पोल ढूँढ निकालता है, उसमें कौन सी वृत्ति काम करती है?
दादाश्री : मन ही वह काम करता है, वृत्ति नहीं। मन का स्वभाव ही है। इस तरह से पोल ढूँढने का।।
प्रश्नकर्ता : मन पोल मार रहा हो तो उसे कैसे रोकें ?
दादाश्री : निश्चय से। निश्चय होगा तो फिर वह पोल मारेगा ही कैसे? अपना निश्चय है तो कोई पोल मारेगा ही नहीं न? जिसे ऐसा निश्चय है कि 'मांसाहार नहीं करना है' तो वह खाता ही नहीं।