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दृष्टि उखड़े, 'थ्री विज़न' से (खं-2-२)
दृष्टि सम्यक हो जाए तो सभी दुःखों का क्षय हो जाएगा ! फिर वह गलती नहीं होने देगी, दृष्टि आकृष्ट नहीं होगी
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कृपालुदेव ने तो कितना कुछ कहा है, फिर भी कहते हैं कि ‘देखत भूली' होती है, देखते हैं और गलती हो जाती है। देखत भूली टल जाए तो सभी दुःखों का क्षय हो जाएगा। तो 'देखत भूली' टालने का मैंने यह मार्ग बताया कि 'यह जो स्त्री जा रही है, उनमें तू शुद्धात्मा देखना । ' तुझे शुद्धात्मा दिखेंगे तो फिर देखने को और कुछ नहीं रहेगा। बाकी तो जंग लगा हुआ है। किसी को लाल ज़ंग लगा होता है, किसी को पीला ज़ंग लगा होता है, किसी को हरा जंग लगा होता है, लेकिन हमें तो सिर्फ लोहा ही देखना है न?! और जंग दिख जाए तो उसके सामने उपाय दे दिया है। संयोगवश फँस जाए तो उसमें हर्ज नहीं है, लेकिन इच्छापूर्वक नहीं होना चाहिए। संयोगवश तो ज्ञानी भी फँस सकते हैं।
यह विषय तो अविचार की वजह से है । सोचने से हमें फायदा-नुकसान का पता चलता है या नहीं ? और जिसे विचार नहीं आते तो उसे फायदा-नुकसान का पता नहीं चलता न ? उसी तरह यदि कोई सोचनेवाला होगा तो यह विषय तो खड़ा ही नहीं रहेगा, लेकिन यह कालचक्र ऐसा है कि जलन में उसे हिताहित का भान ही नहीं रहा कि खुद का हित किस में है और अहित किस में? दूसरा, इस विषय के स्वरूप को समझपूर्वक बहुत सोचा हो तब भी अभी जो विषय खड़ा होता है, वह पहले के अविचारों का कारण है। इसलिए 'देखत भूली' टलती नहीं है न! विषय का विचार नहीं आया हो, लेकिन कहीं पर ऐसा देखने में आ जाए, तो भी तुरंत ही भूल हो जाती है। देखे और भूल जाए, ऐसा होता है या नहीं ?
'देखत भूली' का अर्थ क्या है ? मिथ्यादर्शन! लेकिन बाकी सब 'देखत भूली' हो तो उसमें हर्ज नहीं है, लेकिन इस विषय