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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
प्रश्नकर्ता : स्त्री के प्रति मोह और राग जाएगा, क्या तब रुचि खत्म हो जाएगी? ।
दादाश्री : रुचि की गाँठ तो अनंत जन्मों से पड़ी हुई है। कब फूट निकले, वह कहा नहीं जा सकता। इसलिए इस संग में ही रहना। इस संग से बाहर गए कि फिर से उस रुचि के आधार पर सब फूट निकलेगा वापस। इसलिए इन ब्रह्मचारियों के संग में ही रहना पड़ेगा। अभी तक यह रुचि गई नहीं है, इसलिए दूसरे कुसंग में गए कि तुरंत ही वह शुरू हो जाता है। क्योंकि कुसंग का पूरा स्वभाव ही ऐसा है।
प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण करें फिर भी?
दादाश्री : वहाँ तू लाख प्रतिक्रमण करेगा, फिर भी यदि कुसंग होगा तो सबकुछ उल्टा ही होगा!
प्रश्नकर्ता : लेकिन वह कुसंग तो हमें चाहिए नहीं। उसकी तो हमें इच्छा ही नहीं है, फिर भी?
दादाश्री : कुसंग तो हमें नहीं चाहिए, लेकिन कभी कभार ऐसा संयोग आ जाता है न? सत्संग छूट गया और कुसंग में आ गया तो क्योंकि अंदर रुचि पड़ी है इसलिए कुसंग घेर लेगा। लेकिन जिसकी रुचि खत्म हो गई है उसे फिर कुसंग नहीं छूएगा। रुचि खत्म हो गई है यानी उसमें रुचि का बीज नहीं है, फिर संयोग मिलने पर भी बीज उगेगा ही नहीं न!