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दृष्टि उखड़े, 'थ्री विज़न' से (खं-2-२)
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मोह राजा का अंतिम व्यूह
मोहबाज़ार चौदह साल की उम्र में शुरू होता है और चालीस साल के बाद खत्म होता है, तब वह पेड़ सूख जाता है! ये तो तरह-तरह के मोह हैं ! वर्ना हिन्दुस्तान के एक-एक मनुष्य में तो ऐसी शक्तियाँ हैं कि काम निकाल दें!
प्रश्नकर्ता : सबसे ज़्यादा शक्तियाँ ज़्यादातर कहाँ व्यर्थ हो जाती हैं ?
शक्तियाँ कहाँ खर्च होती है ?
दादाश्री : इस मोह में ही, मोह और अजागृति में। बाकी जितना मोह कम उतनी ही शक्ति ज़्यादा ।
मोहराजा ने अंतिम पांसा फेंका है। अभी सर्वत्र विषय का ही मोह व्याप्त हो गया है। पहले तो मान का मोह, कीर्ति का मोह, लक्ष्मी का मोह, मोह सर्वत्र बिखरा हुआ था। आज सभी मोह सिर्फ विषय में ही व्याप्त हो गया है और भयंकर जलन में ही जीवन जी रहे है । सिर्फ ये साधु - महाराज ही विषय से अलग हुए हैं, इसलिए उन्हें थोड़ी-बहुत शांति है।
जिसमें ज्ञानशक्ति ज़बरदस्त हो और विषय का तो विचार तक नहीं आता हो, तो वह भले ही शादी न करे। लेकिन जब तक रूप पर मोह है, तब तक शादी कर लेनी चाहिए। शादी करना आवश्यक है और शादी करना बहुत बड़ा जोखिम है और जोखिम उठाए (में उतरे / पड़े) बिना पार आए ऐसा भी नहीं है। जिसे मोह है, उसे शादी कर ही लेनी चाहिए। वर्ना हरहाया पशु बन जाएगा। किसी के खेत में घुसा कि मारा जाएगा और भयंकर अधोगति को न्यौता देगा। शादी यानी क्या कि हक़ का भोगना, और उसमें तो अणहक्क का विचार आए तो अधोगति में जाएगा ! शरीर पर राग ही क्यों होना चाहिए ? शरीर किसका बना हुआ है ?
प्रश्नकर्ता : पुद्गल का ।