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दृष्टि उखड़े, 'थ्री विज़न' से (खं-2-२)
न कभी आपकी ऐसी दृष्टि करवा देगा। क्योंकि ज्ञान देनेवाले की दृष्टि ऐसी है, मेरी दृष्टि ऐसी है। यानी जैसी ज्ञान देनेवाले की दृष्टि होगी वैसी ही दृष्टि हो जाएगी। जिसे आरपार दिखता है, उसे मोह कैसे होगा फिर ?
खरा ब्रह्मचर्य, जागृतिपूर्वक का
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प्रश्नकर्ता :
स्त्री-पुरुष का भेद भूलना पड़ेगा न ?
दादाश्री : भेद नहीं भूलना है। भेद तो हमें मूर्च्छा की वजह से लगता है और यों भूलने से वह भूला जा सके, ऐसा है नहीं । उसे जागना पड़ेगा, वैसी जागृति होनी चाहिए।
यह ज्ञान प्राप्त हुआ इसलिए 'आत्मदृष्टि' हुई, इसलिए अब जैसे-जैसे जागृति बढ़ेगी, वैसे-वैसे वह भी आरपार देखने लगेगा। आरपार देखने लगा कि अपने आप ही वैराग आएगा। देखा तो वैराग आएगा ही और तभी वीतराग हुआ जा सकेगा, वर्ना वीतराग हुआ जा सकता होगा क्या? और वास्तव में एक्ज़ेक्ट ऐसा ही है ।
जब जागृति 'फुल' हो जाए, तब वह जागृति ही केवलज्ञान में परिणमित होती है ।
प्रश्नकर्ता : 'ब्रह्मचर्य पालन करना है' जब ऐसा निश्चय होता है न, तभी से जागृति बढ़ जाती है।
दादाश्री : नहीं । जागृति वह तो, जब हम 'ज्ञान' देते हैं तब जागृति उत्पन्न होती है। इसके अलावा जागृति का और कोई उपाय है ही नहीं । ये बाहर के लोग ब्रह्मचर्य पालन करते ही है न? लेकिन उसमें जागृति नहीं होती।
ब्रह्मचर्य इस जागृति के आधार पर है न? जागृति ‘डिम’ होने से ही यह मोह उत्पन्न होता है न! वर्ना इसमें क्या हड्डी, पीप और मांस भरा हुआ नहीं है ?
प्रश्नकर्ता यानी इस विषय की तरफ कपड़ों की वजह
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