________________
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
प्रश्नकर्ता : हाँ, ऐसा तो ठीक से लगता है। इस विषय में सुख नहीं है, यह तो पक्का समझ में आ गया है।
७८
दादाश्री : अन्य किसी स्त्री को देखे तो तुझे विचार नहीं आता न ?
है।
नहीं।
प्रश्नकर्ता 4 आता है कभी-कभार ।
दादाश्री : ऐसा होता है, इसका मतलब अभी भी कमी
प्रश्नकर्ता : सिर्फ यों साधारण मोह ही होता है, और कुछ
दादाश्री : मोह तो फिर घसीट ही ले जाएगा न ! इस विषय को जीतना तो बहुत कठिन चीज़ है। इसे हमारे ज्ञान से जीता जा सकता है। यह ज्ञान निरंतर सुखदायी है न, इसलिए जीत सकते हैं।
उसके सेवन से पात्रता
फिर कृपालुदेव तो क्या कहते हैं, कि
पात्र विना वस्तु ना रहे, पात्रे आत्मिक ज्ञान,
पात्र थवा सेवो सदा, ब्रह्मचर्य मति मान
44
"
श्रीमद् राजचंद्र
ब्रह्मचर्य के सेवन से तो पात्र बनेगा, कृपालुदेव ऐसा कहते हैं। उन्होंने ऐसा नहीं कहा है कि आम मत खाना। जड़ को ही पकड़ा है पूरा। यदि सामनेवाला निर्जीव होता और दावा नहीं करता तो ब्रह्मचर्य सेवन नहीं करते जबकि ये तो दावा करते हैं।
" जे नववाड विशुद्धथी, धरे शियळ सुखदाय
11
- श्रीमद् राजचंद्र