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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
प्रश्नकर्ता : नहीं।
दादाश्री : यह विषय कैसे खड़ा है, वही समझ में नहीं आता। वह खुली आँखों से सो रहा है तो, उस सोनेवाले का क्या करे? लोग तो यह नहीं जानते कि 'देह के अंदर क्या है।' तू रॉकेट(आतिशबाज़ी) लाए तो तुझे पता चलेगा न, कि इसमें बारूद भरा हुआ है?
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : तो इसमें क्यों पता नहीं चलता? रॉकेट का तो ध्यान में रहता ही है कि यह बारूद से भरा हुआ है। यह फूटा नहीं है, अभी फूटना बाकी है और यह फूट चुका है। ऐसा पता चलता है न? और इस जीवित मनुष्य में कैसा बारूद भरा हुआ है, इसका क्यों पता नहीं चलता? इसमें कौन-कौन सा बारूद भरा
प्रश्नकर्ता : हड्डियाँ, खून, मांस। दादाश्री : अंदर हड्डियाँ हैं क्या? तूने कैसे देख लीं? प्रश्नकर्ता : देखा नहीं है लेकिन बुद्धि से पता चलता है
दादाश्री : बुद्धि तो परावलंबी है, स्वावलंबी नहीं है। कहीं ओर देखा होगा तो उस पर से पता चलता है कि इंसान में ऐसाऐसा होता है, तो वैसा ही मुझ में भी होना चाहिए। बुद्धि परावलंबी है और ज्ञान परावलंबी नहीं है। ज्ञान सीधा देखता है। जिससे गंद जैसा लगे, ऐसा और कुछ होता होगा शरीर में?
प्रश्नकर्ता : दुष्टता होती है।
दादाश्री : दुष्टता तो मान लो कि ठीक है, वह प्राकृत गुण कहलाती हैं, लेकिन इसमें माल क्या-क्या है?