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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
हों, दो हज़ार की साड़ी पहनी हो फिर भी देखते ही तुरंत जागृति खड़ी हो जाती थी, वह नेकेड दिखती थी। फिर दूसरी जागृति उत्पन्न होती थी, तो बिना चमड़ी की दिखती और तीसरी जागृति में फिर पेट काट दिया हो तो अंदर आते दिखती थी, आंतों में क्या-क्या होता है, वह सबकुछ दिखता था। अंदर खून की नसें दिखतीं, संडास दिखती, इस तरह सारी गंदगी दिखती। फिर विषय खड़ा होता ही नहीं था न! इनमें से सिर्फ आत्मा ही शुद्ध वस्तु है, वहाँ जाकर हमारी दृष्टि रुकती है, फिर मोह कैसे होगा? लोगों को इस तरह आरपार दिखता नहीं है न? लोगों के पास ऐसी दृष्टि नहीं है न? ऐसी जागृति लाएँ भी कहाँ से? ऐसा दिखना, वह तो बहुत बड़ी जागृति कहलाती है। एट-ए-टाइम ये तीनों प्रकार की जागृति रहती हैं। मुझे जैसी जागृति थी, वह आपको बता रहा हँ। जिस तरीके से मैं जीता हूँ, वह तरीका आप सभी को, यह जीतने का रास्ता बता दिया। रास्ता तो होना चाहिए न? और जागृति के बिना तो ऐसा कभी होगा ही नहीं न?
यह काल तो इतना विचित्र है, पहले तो लिपस्टिक और चेहरे पर पाउडर, यह सब कहाँ लगाते थे? जबकि अभी तो ऐसा सब खड़ा किया है कि बल्कि आकृष्ट करता है लोगों को। ऐसा सारा मोहबाज़ार हो गया है! पहले तो अगर शरीर अच्छा होता, खूबसूरत होता था तब भी ऐसे मोह के साधन नहीं थे। अभी तो निरा मोहबाज़ार ही है न? उससे बदसूरत लोग भी सुंदर दिखते हैं, लेकिन इसमें देखना क्या है? यह तो निरी गंदगी!
इसलिए मुझे तो बहुत जागृति रहती है, ज़बरदस्त जागृति रहती है! अपना ज्ञान जागृतिवाला है, एट-ए-टाइम लाइट करनी हो तो हो सकती है! अब यदि उस समय ऐसी जागृति का उपयोग न करे तो इंसान मारा जाएगा। हम कितना भी शुद्धात्मा देखने जाएँ, फिर भी वह दृष्टि को स्थिर नहीं होने देता, अतः ऐसा उपयोग चाहिए। हमारा ज्ञान होने से पहले ऐसा उपयोग सेट था, वर्ना यह