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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
दादाश्री : वह और तुम दोनों अलग ही हो न? और वह तो बदलेगा नहीं। जो बदलनेवाला नहीं है, अगर उसे हम बदलने जाएँ तो क्या होगा ? लेकिन प्रतिक्रमण से दिन ब दिन बदलाव होता जा रहा है न ?
प्रश्नकर्ता
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हाँ। उस ओर की स्थिरता यों बढ़ रही है ।
राजा जीतने से जीतेंगे पूरा राज
कृपालुदेव ने तो क्या कहा है कि,
" नीरखीने नवयौवना, लेश न विषय निदान, गणे काष्ठनी पूतड़ी, ते भगवान समान
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श्रीमद् राजचंद्र
अक्रम मार्ग में हमें स्त्री को काष्ठ की पुतली नहीं मानना है। हमें आत्मा देखना है । यह तो क्रमिकमार्गवाले काष्ठ की पुतली कहते हैं, लेकिन ऐसा कब तक रह पाएगा? ज़रा फिर से विचार आ जाए तो उस समय वापस गायब हो जाएगा लेकिन अगर हम शुद्धात्मा देखें तो ? यानी नवयौवना को देखकर भीतर चित्त आकर्षित हो गया हो तो वहाँ पर शुद्धात्मा को देखते रहने से सब चला जाएगा, चित्त फिर छूट जाएगा । विषय को जीतने के लिए यदि शुद्धात्मा को देखेंगे, तब निबेड़ा आएगा। वर्ना निबेड़ा नहीं आएगा।
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आ सघळा संसारनी, रमणी नायकरूप,
ए त्यागी त्याग्युं बधुं, केवल शोक स्वरूप
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श्रीमद् राजचंद्र
सारा शोक उसी से खड़ा हुआ है । स्त्री का त्याग हुआ, उससे अलग हुए कि पूरा निबेड़ा आ जाएगा। जो निरंतर शोक का ही स्वरूप है। पूरे दिन शोक, शोक और शोक ही रहता