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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
उसका सार क्या है? तब कहते हैं, उसे नहीं संभालोगे तो मनुष्यपन चला जाएगा। सार का सार है वह । तत्व का तत्वार्क है, अर्क कम इस्तेमाल होगा तो अच्छा है या ज़्यादा इस्तेमाल होगा तो ?
प्रश्नकर्ता: कम इस्तेमाल होगा तो अच्छा है।
किफायत करो वीर्य और लक्ष्मी की
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दादाश्री : इसलिए इस जगत् में दो चीज़ों का अपव्यय नहीं करना चाहिए। एक तो लक्ष्मी और दूसरा वीर्य । जगत् की लक्ष्मी गटर में ही जा रही है। अतः लक्ष्मी खुद के लिए इस्तेमाल नहीं होनी चाहिए। बेकार में दुरुपयोग नहीं होना चाहिए और हो सके तब तक ब्रह्मचर्य पालन करना चाहिए । जो आहार खाते हैं, उसका अर्क बनकर अंत में वह अब्रह्मचर्य से खत्म हो जाता है। इस शरीर में कुछ नसें ऐसी होती है जो वीर्य संभालती हैं और वह वीर्य इस शरीर को संभालता है। इसलिए हो सके तब तक ब्रह्मचर्य संभालना चाहिए।
ब्रह्मचर्य का रिवाज तो सिर्फ मनुष्य जाति में ही हैं न ! मजबूरन उपदेश देकर ब्रह्मचारी बनाते हैं । फिर भी वह फलदायी है, इसलिए इसे चलने दिया। वास्तव में तो ब्रह्मचर्य पालन समझकर करना चाहिए । ब्रह्मचर्य के फल स्वरूप यदि मोक्ष नहीं मिल रहा हो तो वह ब्रह्मचर्य नसबंदी के बराबर ही है। फिर भी उससे शरीर अच्छा रहता है, मज़बूत रहता है, रूपवान बनते हैं, ज़्यादा जीते हैं ! बैल भी हृष्टपुष्ट रहता है न? बैल में भी ताकत बहुत रहती है, तभी तो वह खेत जोतने के काम आता है न ? हम किसी की निंदा नहीं करते लेकिन बात का सार समझ लेना है ! हज़ार का विदेशी नोट हो तो यहाँ इन्डिया में उसकी एक्सचेन्ज कीमत डेढ़ सौ रुपये ही होती है। इसलिए हज़ार के बदले हज़ार रुपया गिनकर नहीं दे सकते। अतः हमें ऐसी जाँच कर लेनी चाहिए कि इस चीज़ की एक्सचेन्ज कीमत क्या है ? यह ब्रह्मचर्य कैसा है ? और खरा ब्रह्मचर्य कैसा होता है ?! जिस ब्रह्मचर्य से मोक्ष हो, वह ब्रह्मचर्य काम का !