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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
मत खाना और हम मिर्च खा लें, तो क्या होगा ? लेकिन फूलिश बहुत नहीं होते, कुछ ही होते हैं और यदि उसने मिर्च खाई तो फिर उसका रोग बढ़ेगा ।
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प्रश्नकर्ता : लेकिन अब उसे क्या करना चाहिए ? उपाय तो होना चाहिए न ?
दादाश्री : प्रतिक्रमण करना है। और क्या ?
प्रश्नकर्ता : लेकिन क्या ज्ञानी को नहीं बताना चाहिए ? जिन्होंने आज्ञा दी हो, उन्हें बताना तो पड़ेगा न ?
दादाश्री : हाँ, बता दिया, फिर भी प्रतिक्रमण करने हैं। बाकी, अगर वह मिर्च खा ले तो, उसमें ज्ञानी थोड़े ही ज़हर खा लेंगे ?
कभी अंदर खराब विचार उगे और उसे निकाल देने में देर हो जाए तो ज़रा बड़ा प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। वर्ना विचार उगते ही तुरंत निकाल देना चाहिए । उखाड़कर तुरंत फेंक देना चाहिए। बाकी, यह विषय-विकार ऐसा है कि जिसे एक सेकन्ड के लिए भी, ज़रा सा भी नहीं रहने देना चाहिए। वर्ना पेड़ बनते देर नहीं लगेगी। इसलिए उगते ही तुरंत उखाड़कर फेंक देना । जैसे कि अगर हमें गेहूँ बोने हों और तंबाकू का पौधा उग जाए तो उसे तुरंत निकाल देते हैं, उसी तरह इसमें भी विषय को उखाड़ देना चाहिए ।
प्रश्नकर्ता : विषय का अज्ञान, वह क्या है ?
दादाश्री : बगीचे में क्या बोया है, वह जब उगे तब पता चलता है कि यह तो धनिया उगा है, यह तो मेथी उगी है, उसके पत्तों से पता चलता है न ? वैसा ही विषय के बीज का है, उगते ही उसे वहाँ से खींच लेना चाहिए ।
जो पड़े हुए बीज उखाड़ देता है, उन्हें उखाड़ देने के बाद जो विषय रहे, वह विषय है ही नहीं। पेड़ है तो भले ही रहा, बारिश हो तो भले ही हो। ऐसा मान लेना कि अगर यहाँ पर