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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
दादाश्री : अपने पास प्रतिक्रमण का साधन है, उससे धो देना। नज़रें मिल जाएँ, तब तो तुरंत ही प्रतिक्रमण कर लेना चाहिए। इसीलिए तो कहा है न कि मनोहर स्त्री के फोटो या मूर्ति मत रखना।
उस मिठास का पृथक्करण करके तो देखो अब कहीं भी मीठा लगता है क्या?
प्रश्नकर्ता : मीठा तो लग जाता है, लेकिन वह जोखिमदारी है, ऐसा समझ में आता है।
दादाश्री : जहाँ तक मीठा लग रहा है न, जोखिमदारी भले ही लग रही हो, लेकिन जब मीठा लगने लगे वहाँ पर वह कभी न कभी जोखिमदारी भुला देगा। कर्म के उदय ऐसे-ऐसे आते हैं कि जोखिमदारी भुला देता है। और यह मीठा किस हिसाब से लगता है, वही मुझे समझ में नहीं आता। इसमें कौन सा भाग मीठा है?!
प्रश्नकर्ता : वह क्या भ्रांति से मीठा लगता है ?
दादाश्री : भ्रांति से मीठा लग रहा होता, तो भी अच्छा था। यह तो भ्रांति भी नहीं है। इसे कौन मीठा कहेगा? ।
यहाँ मुंबई में अगर पानी इतना कम हो जाए कि नहाने का भी ठिकाना नहीं पड़े तो इन लोगों की क्या दशा होगी? घर में सभी से एक रूम में बैठा भी नहीं जा सकेगा, इतने बदबूदार हो जाएँगे! यह तो, हररोज़ नहाते हैं फिर भी बदबू आती है न?
और यदि नहीं नहाएँगे तब तो सिर फट जाए इतनी बदबू आएगी। ये नहाते हैं फिर भी दोपहर दो बजे कपड़ा घिसकर यदि पानी में निचोड़ें तो पानी खारा हो जाएगा। फिर भी देह को कीमती क्यों माना है? क्योंकि अंदर भगवान प्रकट हुए हैं, व्यक्त हुए हैं। इसलिए अन्य सभी प्रकार की देह की अपेक्षा इसे कीमती माना