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किस समझ से विषय में... (खं-2-1)
इसीलिए सामने ऐसे निमित्त मिले हैं न? अतः हमें अपने भाव ही तोड़ देने चाहिए, तो फिर निमित्त गले नहीं पड़ेगा न!
दादाश्री : सच कहा है। इसीलिए हम कहते हैं कि भावनिद्रा टालो। ये ऐसे लोग हैं कि सभी तरह के भाव आएँ। उसमें भावनिद्रा नहीं आनी चाहिए, देहनिद्रा आएगी तो चलेगा।
प्रश्नकर्ता : लेकिन भावनिद्रा ही आती है न?
दादाश्री : ऐसा कैसे चलेगा? यदि ट्रेन सामने से आ रही हो तो भावनिद्रा नहीं रखते। ट्रेन से तो एक ही जन्म की मृत्यु है, लेकिन यह तो अनंत जन्मों का जोखिम है। जहाँ चित्र-विचित्र भाव उत्पन्न हों, ऐसा यह जगत् है। उसमें तुझे खुद ही समझ लेना है। भावनिद्रा आती है या नहीं? भावनिद्रा आएगी तो संसार तुझे बाँध लेगा। अब अगर भावनिद्रा आ जाए तो वहीं, उसी दुकान के शुद्धात्मा से ब्रह्मचर्य के लिए शक्तियाँ माँगना कि, 'हे शुद्धात्मा भगवान, मुझे पूरी दुनिया के साथ ब्रह्मचर्य पालन करने की शक्तियाँ दीजिए।' यदि हमसे शक्तियाँ माँगोगे तो उत्तम ही है, लेकिन वह तो डायरेक्ट, जिस दुकान से व्यवहार हुआ है, वहीं माँग लेना सबसे अच्छा।
सुंदर फूल हों तो वहाँ देखने का मन होता है न? वैसे ही इन सुंदर लोगों को देखने का मन हो जाता है और वहीं पर थप्पड़ पड़ जाती है। इन फूलों को सूंघना, खाना-पीना, लेकिन 'इस' एक ही जगह पर देखने की ज़रूरत नहीं है, कहीं भी नज़र मत मिलाना।
प्रश्नकर्ता : नहीं देखना हो फिर भी यदि सुंदर स्त्री दिख जाए, तब वहाँ क्या करना चाहिए?
दादाश्री : उस समय नज़रें मत मिलाना। प्रश्नकर्ता : नज़रें मिल जाएँ तो क्या करना चाहिए?