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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
देना पड़ेगा। दूसरा, यों अगर नज़र मिल गई किसी से तो तुरंत हटा देनी पड़ेगी। वर्ना वह पौधा ज़रा भी बड़ा हुआ कि तुरंत उसमें से वापस बीज़ डलेंगे। इसलिए उस पौधे को तो उगते ही निकाल देना पड़ेगा। तुम्हें पता चले कि यह गुलाब का पौधा नहीं है, यह कुछ और है, तो तुरंत उखाड़कर फेंक देना।
जिस संग में ऐसा लगे कि हम फँस जाएँगे तो उस संग से बहुत ही दूर रहना, वर्ना एक बार फँस गए तो बार-बार फँसते ही जाओगे, इसलिए वहाँ से भाग जाना। फिसलनवाली जगह हो
और वहाँ से भाग जाओगे तो फिसलोगे नहीं। सत्संग में तो दूसरी 'फाइलें' नहीं मिलेंगी न? सभी एक जैसे विचारवाले मिलते हैं
न?
अंकुर फूटते ही उसे उखाड़ देना मन में विषय का विचार आया कि तुरंत उसे उखाड़ देना चाहिए और कहीं आकर्षण हुआ कि तुरंत ही प्रतिक्रमण करना चाहिए। जो इन दो शब्दों को पकड़ ले, उसका ब्रह्मचर्य हमेशा रहेगा। हमें ऐसा लगता है कि यह विषय-विकार का आकर्षण हुआ कि तुरंत प्रतिक्रमण कर लेना चाहिए और कोई विषय-विकार का विचार अंदर से उगा तो वह पौधा तुरंत ही उखाड़कर बाहर फेंक देना। बस, जो ये दो चीजें करे, उसे फिर दिक्कत नहीं होगी।
प्रश्नकर्ता : लेकिन जागति और यह, दोनों एक साथ रह सकते हैं?
दादाश्री : नहीं, जागृति होगी तभी यह हो पाएगा, वर्ना नहीं हो पाएगा न!
यह पौधा उगने लगे तभी से समझ जाना कि यह पौधा काँटेदार है। इसलिए उसे उगते ही उखाड़कर फेंक देना। वर्ना अगर चिपक जाएगा तो उसके काँटों से पूरे शरीर पर जलन होगी। इसलिए फिर से नहीं उगे उस तरह से फेंक देना। उसी तरह जब इस