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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
इस तरफ लगा रहता है या उस तरफ रहता है। यहाँ से छूट जाए तो वहाँ लग जाता है, उसके लिए हमें बैठे नहीं रहना चाहिए। इसलिए बहुत सावधान रहने जैसा है। हम यहाँ से छोड़ेंगे, तभी वहाँ लगेगा न? और वहाँ चिपकने लगे उससे पहले ही सावधान हो जाना। आँखें तो गड़ानी ही नहीं चाहिए, नीचे देखकर ही चलना। तू किसी के सामने आँखें नहीं गड़ाता न?
प्रश्नकर्ता : नहीं।
दादाश्री : तब तो बहुत समझदार है, तू जीत गया। आँखें तो कभी भी मत गड़ाना, बहुत शोर मचाए फिर भी। वर्ना यहाँ इस सत्संग में जितना दिल लगा हुआ होगा तो वह भी हट जाएगा।
दूषमकाल में नज़र को संभालना। यह दूषमकाल है, इसलिए सावधान रहो, अभी भी सावधान हो जाओ। दृष्टि तो बिल्कुल शुद्ध रहनी चाहिए। पहले के जमाने के सख्त लोग तो आँखें फोड़ देते थे। हमें आखें नहीं फोड़ देनी है, वह तो मुर्खता है। हमें आँखें फेर लेनी है, उसके बावजूद भी अगर देख लिया तो प्रतिक्रमण कर लेना चाहिए। यह प्रतिक्रमण तो एक मिनिट के लिए भी मत चूकना। खाने-पीने में गलती हो जाए तो चलेगा, लेकिन आँखें गड़ाकर देख ही कैसे सकते हैं? संसार में सबसे बड़ा रोग यही है, इसी की वजह से संसार खड़ा है। विषय की नींव पर संसार खड़ा है, मूल में विषय ही है।
विषय तो किसी को भी अच्छा नहीं लगता, लेकिन ये पहले के हिसाब हो चुके हैं, और आँखें गड़ाई तभी से हिसाब शुरू हो गया। वह फिर छोड़ता नहीं है। ये सभी स्त्रियाँ कहीं हमें आकर्षित नहीं करती। जो आकर्षित करती हैं, वह अपना पिछला हिसाब है। इसलिए वहाँ से उखाड़कर फेंक दो, साफ कर दो। अपने ज्ञान के बाद कोई परेशानी नहीं आती, मात्र एक विषय के लिए ही हम सावधान करते हैं। आँखें गड़ाना ही गुनाह है