________________
किस समझ से विषय में... (खं-2-1)
दादाश्री : देखते ही रहना है, देखने के बाद चंद्रेश से कहना है कि इनके प्रतिक्रमण करो। मन-वचन - काया से विकारी दोष, इच्छाएँ, चेष्टाएँ, वे सभी दोष जो हुए हैं, उनका प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। विषय के विचार आएँ लेकिन फिर भी खुद उनसे मुक्त रहे तो कितना आनंद होगा ? तो अगर विषय से हमेशा के लिए छूट जाएगा तो कितना आनंद होगा ?
५९
मोक्ष जाने के चार स्तंभ है। ज्ञान - दर्शन - चारित्र और तप । अब तप कब करना होता है ? मन में विषय के विचार आ रहे हों और खुद का स्ट्रोंग निश्चय हो कि मुझे विषय भोगना ही नहीं है, तो इसे भगवान ने तप कहा है। खुद की किंचित्मात्र भी इच्छा नहीं हो, फिर भी विचार आते रहें तो वहाँ तप करना है ।
अब्रह्मचर्य के विचार आएँ लेकिन ब्रह्मचर्य की शक्तियाँ माँगता रहे तो वह बहुत बड़ी बात है । ब्रह्मचर्य की शक्तियाँ माँगते रहने से किसी को दो साल में, किसी को पाँच साल में, लेकिन वैसा उदय आ जाता है। जिसने अब्रह्मचर्य जीत लिया, उसने पूरा जगत् जीत लिया। ब्रह्मचर्यवाले पर तो शासन देवी-देवता बहुत खुश रहते हैं।
लोकदृष्टि से उल्टा ही चलता रहता है न ? लेकिन जब ज्ञानीपुरुष की मौजूदगी होती हैं, तब ब्रह्मचर्य पालन किया जा सकता है, वर्ना नहीं कर सकते। एक भी विचार बिगड़ना नहीं चाहिए । विचार बदला कि सबकुछ बिगड़ा। किसी भी तरह एक भी विचार नहीं बदलना चाहिए। यह ज्ञान है इसलिए जागृति तो है ही हमें ! जागृति है इसलिए अगर विचार नहीं बदलेगा तो कुछ भी नहीं होगा । फिर भी विचार बदल जाए तो प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। क्योंकि वह पिछला हिसाब है। वह एक जन्म में जो बिगड़ गया है, उसे चुका दो।
यदि सावधान रहने जैसा हो तो वह सिर्फ विषय से । सिर्फ विषय को जीत ले तो बहुत हो गया । उसका विचार आने से पहले ही उखाड़ देना पड़ेगा। अंदर विचार उगा कि तुरंत ही उखाड़