________________
३५
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
जैसे विषय भोगता जाता है, वैसे-वैसे ज़्यादा सुलगता है। विषय तो ज़्यादा सुलगते जाते हैं।
जो भी सुख भोगते हैं, उसकी प्यास बढ़ती जाती है। भोगने से प्यास बढ़ती जाती है। नहीं भोगने से प्यास मिट जाती है। उसे कहते हैं तृष्णा। नहीं भोगने से थोड़े दिन परेशान रहेंगे, शायद महीने-दो महीने लेकिन अपरिचय से फिर बिल्कुल भूल ही जाएँगे।
और इस बात में दम नहीं है कि भोगनेवाला इंसान, वासना निकाल सकेगा। इसलिए लोगों की, शास्त्रों की खोज है कि यह ब्रह्मचर्य का रास्ता ही उत्तम है। अत: सबसे बड़ा उपाय है अपरिचय! ताकि जब विचार आएँ, तो उन्हें तौल सके और उसके परिणामों का पता चले। परिचय से तो पता ही नहीं चलता कि क्या दोष है! और अपरिचय से विषय छूट जाता है। हिन्दुस्तान में लोग यही नहीं समझते कि ब्रह्मचर्य किसे कहते हैं। अपरिचय से विषय पूरा खत्म हो जाता है।
और एक बार उस चीज़ से दूर रहे न, बारह महीने या दो साल तक दूर रहे तो उस चीज़ को भूल ही जाता है फिर। मन का स्वभाव कैसा है? दूर रहा कि भूल जाता है। नज़दीक जाए तो फिर कोचता रहता है! मन का परिचय छूट गया। 'हम' अलग रहे, इसलिए मन भी उस चीज़ से दूर रहा, इसलिए फिर भूल जाता है, हमेशा के लिए। उसे याद तक नहीं आती। बाद में, कहने पर भी उस तरफ नहीं जाता। ऐसा तुझे समझ में आता है? तू तेरे दोस्त से दो साल दूर रहेगा तो फिर तेरा मन भूल जाएगा। महीने-दो महीने तक किच-किच करता रहेगा, मन का स्वभाव ऐसा है और अपना ज्ञान तो मन की सुनता ही नहीं है न?
नहीं रोकना चाहिए मन को प्रश्नकर्ता : मन को जब विषय भोगने की छूट देते हैं,