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किस समझ से विषय में... (खं-2-1)
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अभिप्राय रहना चाहिए। यह बगीचा नहीं है। यह फँसाव ही है ऐसा भान रहेगा तो छूटा जा सकेगा। लेकिन यहाँ ऐसा भान नहीं रहता है न? फँसाव हो तो वहाँ कैसा रहता है ? और बगीचे में घूम रहे हों, तब कैसा रहता है ? बगीचे में तो यों उल्लास रहता है, जबकि फँसाव में तो कब इसमें से छूट जाऊँ, ऐसा रहता है न? इसलिए 'हमें ' 'चंद्रेश' से कहना है कि 'चंद्रेश इसमें से कब छूटोगे ! यह तो फँसाव है। इसमें पड़ने जैसा नहीं है । ' लेकिन इसमें फँसाव जैसा नहीं लगता और वहीं मुक्त भाव हो जाता है न ? अब यदि पूरी समझ बदल दें, तो हल आएगा। समझकर दाखिल होना इसमें ...
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प्रश्नकर्ता : यह जो डिसीज़न ले लिया है, लेकिन पिछला माल बहुत है । तो डिसीज़न के आधार पर मैं इसमें से निकल पाऊँगा ?
दादाश्री : डिसीज़न सही होगा तो ज़रूर निकल पाओगे, निश्चय मुख्य चीज़ है। जिसने निश्चय को पकड़ा है, दुनिया में कोई उसका नाम नहीं देगा । तुझे क्यों शंका हो रही है ? शंका हो रही है, वही अनिश्चय कहलाता है।
प्रश्नकर्ता : आपसे पूछकर पक्का कर रहा हूँ।
दादाश्री : नहीं, लेकिन शंका हो रही है, वही अनिश्चय है। कुछ भी नहीं होगा । दादा की छत्रछाया है, फिर क्या होनेवाला है? इसलिए शंका रखने जैसा नहीं है। यह ज्ञान है इसलिए ब्रह्मचर्य में रहा जा सकेगा, वर्ना मैं ही तुम्हें मना कर दूँ। मैं तो आज्ञा दे दूँ कि तुम्हें शादी करनी पड़ेगी। वह तो 'यह' ज्ञान है इसलिए तुम्हें अनुमति देता हूँ। क्योंकि इंसान को सुख का साधन चाहिए न? मरता हुआ इंसान किस सुख के सहारे जीएगा ? यह ज्ञान ऐसा है कि आप इस ज्ञान से आत्मा के ध्यान में रहोगे तो तुरंत आनंद में आ जाओगे । या फिर अगर घंटे भर सभी के