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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
प्रश्नकर्ता व्यवस्थित तो समझ में आ गया है।
दादाश्री : तो 'व्यवस्थित' के बाहर किसी का भी चलनेवाला नहीं है। इसलिए 'व्यवस्थित' पर छोड़कर तय रखो, करो कि मुझे शादी करनी ही नहीं है।
दृढ़ निश्चय
चलेगा ?
लेकिन शादी किए बिना तुझे कैसे प्रश्नकर्ता 4. कौन से जन्म में अनुभव नहीं किया है ?
दादाश्री : सच कह रहा है कि किस जन्म में अनुभव नहीं किया ! बकरी में, कुत्ते में, गधे में, बाघ में, जहाँ गए वहाँ यही अनुभव किए हैं न? ! लेकिन शादी करना यदि ध्येयपूर्वक छूटे तो अच्छा। ‘लोगों को जो अनुभव हुए हैं, वे मुझे ही हुए हैं', अब ऐसा सेट कर लेना पड़ेगा न ? वर्ना जगत् के लोग तुझे अनुभवहीन कहेंगे। शादी होगी या नहीं, वह 'व्यवस्थित' के अधीन हैं, लेकिन अभी यदि पाँच साल इस ज्ञान के आधार पर ब्रह्मचर्य पालन करे तो कितनी शक्तियाँ प्रकट हो जाएँगी और इस देह की रचना भी कितनी अच्छी हो जाएगी ! पूरी जिंदगी बुखार आदि आएगा ही नहीं न !!
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अपना यह विज्ञान ऐसा है कि थोड़े समय में सेफ साइड करवा दे। जिसे भगवान भी नहीं पूछ सकें, ऐसी सेफ साइड कर दे, ऐसा यह विज्ञान है। खाने-पीने की सभी छूट दी है न ? मैंने यदि खाने-पीने में एतराज उठाया होता तो काफी कुछ लोग यहाँ पर आए ही नहीं होते। इसलिए हमने छूट दी है।
इस संसारचक्र का आधार विषय पर है । हैं तो पाँच ही विषय, लेकिन स्त्री से संबंधित विषय तो बहुत ही भारी है। उसके तो बाद में भारी स्पंदन उड़ते हैं। अपना ज्ञान इतना अच्छा है कि उसमें रहे तो उसे कुछ भी स्पर्श नहीं करेगा और पिछला सब धुल जाएगा लेकिन विषय के बारे में जागृत रहना पड़ेगा। वहाँ तो 'इसमें सुख है ही नहीं और यह फँसाव ही है ।' ऐसा