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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
स्वभाव से रहता है, एक क्षण भी चूके बिना, निरंतर रहता है।
सातवीं नर्क का तो सिर्फ वर्णन तक किया जाए तो इंसान सुनते ही मर जाए। तो बोलो, वहाँ कितना भोगवटा (सुख या दुःख का असर) रहता होगा ? कि फिर से संसार भोगने से तो बिल्कुल इन्कार! सिर्फ विषय की वजह से यह संसार खड़ा है I अगर यह स्त्री विषय नहीं होता न, तो बाकी सभी विषय तो कभी भी बाधा नहीं डालते। सिर्फ इस विषय का अभाव रहे तो भी देवगति मिल जाए। इस विषय का अभाव हुआ कि बाकी सभी विषय क़ाबू में आ जाते हैं और इस विषय में पड़ा कि विषय से पहले जानवर गति में जाता है और यदि उससे अधिक विषयी हो तो नर्कगति में जाता है। विषय से बस अधोगति ही है। क्योंकि एक बार के विषय में तो कई करोड़ जीव मर जाते हैं! समझ नहीं है फिर भी जोखिमदारी मोल लेते हैं न ! अतः जहाँ हिंसा है, वहाँ धर्म जैसा कुछ है ही नहीं ।
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प्रश्नकर्ता : समझते हैं फिर भी जगत् के विषयों में मन आकर्षित रहता है, समझते हैं कि सही - -गलत क्या है, फिर भी विषयों से मुक्त नहीं हो पाते। तो इसका क्या उपाय ?
दादाश्री : जो समझ क्रियाकारी हो वही सही समझ कहलाती है। बाकी सब बंजर समझ कहलाती है। अगर दो शीशियाँ हों और एक शीशी में विटामिन का पाउडर हो व दूसरी शीशी में पोइज़न हो, दोनों में सफेद पाउडर हो और हम बच्चे को समझाएँ कि यह विटामिन है, यह लेना और इस दूसरी शीशी में से मत लेना। दूसरी शीशी में से लेगा तो मर जाएगा। उस बच्चे ने ‘मर जाएगा' शब्द सुना इसका मतलब यह नहीं कि वह समझ गया। कहेगा ज़रूर कि यह दवाई लेने से मर जाते हैं, लेकिन मर जाना यानी क्या, उस बात को नहीं समझता । हमें उसे बताना पड़ता है, कि फलाने चाचा उस दिन मर गए थे न ? फिर सभी ने उन्हें वहाँ जला दिया था, इस दवाई से वैसा ही हो जाता है।