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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
प्रश्नकर्ता : अंदर का रस(रुचि) सूख जाता है।
दादाश्री : हाँ। वस्तु को वासना नहीं कहते, रस को वासना कहते हैं। यदि रस नहीं होगा तो वह वासना मानी ही नहीं जाएगी। यानि कि वासना कहाँ से कहाँ गायब हो जाती है। अब वह भी एक ही घंटे के प्रयोग से, ज़्यादा प्रयोग नहीं, इस ज्ञान के बाद वासना चली जाती है न! रस चला जाता है न? बाकी सब स्थूल
है।
ज्ञानी ही छुड़वाते हैं, वासना आसानी से प्रश्नकर्ता : वासना छोड़ने का सबसे आसान रास्ता कौन
सा?
दादाश्री : मेरे पास आना, वही उपाय है। और कौन सा उपाय? आप खुद वासना छोड़ने जाओगे तो दूसरी घुस जाएगी। क्योंकि खाली अवकाश रहता ही नहीं। आप वासना छोड़ते हो तो वहाँ अवकाश हो जाता है और वहाँ फिर दूसरी वासना घुस जाएगी।
प्रश्नकर्ता : इस वासना के बदले और कोई अच्छी वासना आ जाए तो क्या वह अच्छी चीज़ नहीं कहलाएगी?
दादाश्री : वासना चेन्ज हो सकती है। खराब वासना के बदले अच्छी वासना भीतर घुस सकती है, लेकिन अच्छी वासना भीतर घुस जाए तो वापस खराब तैयार कर रही होती है। यदि हमेशा के लिए अच्छी वासना रह सके, ऐसा हो तो यह जगत् बहुत अच्छा है लेकिन वैसा रह नहीं सकता। इसलिए इससे छुटकारा पाना अच्छा है। वासना को कन्वर्ट करें, और अच्छी वासना इकट्ठी करें, ऐसा हो ही नहीं सकता। यह पॉसिबल है ही नहीं। बिल्कुल शुभ वासनावाला इंसान मिलना ही मुश्किल है! ।
प्रश्नकर्ता : यानी सामान्य रूप से पुरुष को स्त्री के प्रति जो झुकाव रहता है, उससे कैसे मुक्ति पा सकते हैं?