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विकारों से विमुक्ति की राह (खं-1-2)
दादाश्री : ऐसा है न, जब तक खुद पुरुष है, तब तक स्त्री के प्रति झुकाव रहेगा ही, जब तक जवानी है, तब तक। अब अस्सी साल के बूढ़े को नहीं होगा! दुकान का दिवाला निकल जाने के बाद क्या होगा? दिवालिया दुकान में कुछ माल होगा क्या? बच्चों को नौ साल तक नहीं होता। यह बीचवाली दुकान ज़रा ज़बरदस्त चलती है, जोरदार। तभी यह सब होता है। जब तक पुरुष हैं, तब तक यह वासना रहेगी और स्त्रियाँ हैं, तब तक वासना रहेगी लेकिन अगर पुरुष ही खत्म हो जाएँ तो?
प्रश्नकर्ता : उसे कैसे मिटा सकते हैं?
दादाश्री : जो वासनावाला है, वह चंद्रेश है और आप तो 'माइ नेम इज़ चंद्रेश' कहते हो। इसलिए आप अलग हो इससे। इस बात पर भरोसा है? तो वह आप कौन हो? इतना ही आपको मैं रियलाइज़ करवा देता हूँ तो आपकी वासना छूट जाएगी।
अब ये वासनाएँ क्या हैं? 'मैं चंद्रेश हूँ' यह मिटेगा, तभी वासनाएँ जाएँगी, वर्ना वासनाएँ नहीं जाएँगी। मैं तो क्या कहता हूँ कि 'आत्मा क्या है' वह जानो, 'अनात्मा क्या है' वह जानो। इतना जानते ही वासनाएँ गायब हो जाएँगी।
जितना डेवेलपमेन्ट ऊँचा, उतनी मूर्छा कम। इसमें क्या भोगना है? सबकुछ भोगकर ही आए हैं। जिसने कम भोगा है, उसे मूर्छा ज़्यादा है।
विषय और कषाय की भेदरेखा प्रश्नकर्ता : आप ने ये क्रोध-मान-माया-लोभ बताए हैं न, तो यह विषय किस में आता है? 'काम' किस में आता है?
दादाश्री : विषय अलग है और ये कषाय अलग हैं। विषयों की यदि हम हद पार करें, हद से ज़्यादा माँगे तो वह लोभ