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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
कामवासना उत्पन्न क्यों होती है, यदि यह जान ले तो उसे क़ाबू में लाया जा सकता है। लेकिन वस्तुस्थिति में वह कहाँ से उत्पन्न होती है, यह जानता ही नहीं। फिर क़ाबू में कैसे ले सकता है ? कोई क़ाबू में नहीं ले सकता । जिसका ऐसा दिखता है, कि क़ाबू में कर लिया है, वह तो पूर्व की भावना का फल है, बाकी कामवासना का स्वरूप कहाँ से उत्पन्न हुआ, उस उत्पन्न दशा को समझ ले और वहीं पर ताला लगा दिया जाए तभी उसे क़ाबू में ले सकते हैं। इसके सिवा भले ही वह ताला लगाए या कुछ और करे फिर भी उसका कुछ चलेगा नहीं । काम-वासना नहीं करनी हो तो हम रास्ता दिखाएँगे ।
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अज्ञान की गलतियों की सज़ा इन्द्रियों को
प्रश्नकर्ता : ये जो इन्द्रियाँ हैं, वे भोगे बिना शांत नहीं होती । तो इसके अलावा और कोई उपाय है ?
दादाश्री : ऐसा कुछ भी नहीं है। बेचारी इन्द्रियाँ तो ठेठ तक भोग भोगती ही रहती हैं। उनमें जब तक सत्व रहे, तब तक। जीभ में अगर बरकत हो न तब उस पर हम कोई भी चीज़ रखे कि तुरंत उसका स्वाद हमें बता देगी, और बड़ी उम्र हो जाए और जीभ में बरकत नहीं रहे तो नहीं बताती । आखों में बरकत हो तो सभी, कोई भी चीज़ हो उसे बता देती है I बूढ़ापे की वजह से अगर बरकत ज़रा कम हो गई हो, तो नहीं बता सकतीं। अतः उम्र होने पर बेचारी इन्द्रियाँ तो अपने आप ही फीकी पड़ जाती हैं लेकिन ये विषय फीके नहीं पड़ते । ये इन्द्रियाँ विषयी नहीं है।
विषय इन इन्द्रियों का दोष नहीं है । इन्द्रियों को बिना वजह सज़ा देते हैं लोग। इन्द्रियों को, शरीर को सज़ा देते हैं न, सभी ? वे भैंस की भूल पर चरवाहे को मारते हैं। भूल भैंस की और मारते हैं चरवाहे को । भूखा मारते हैं, बिना वजह । उनका क्यों नाम देता है तू ? सीधा रह न । तेरा टेढ़ा है अंदर, नीयत चोर