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विश्लेषण, विषय के स्वरूप का (खं-1-1)
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तो पुण्य की वजह से शारीरिक संपत्ति होती है और दूसरी, उस एक्स्ट्रैक्ट की वजह से। और एक्स्ट्रैक्ट की वजह से यदि शारीरिक संपत्ति हो तो उसकी तो बात ही अलग है न?!
प्रश्नकर्ता : उस एक्स्ट्रैक्ट की वजह से शारीरिक संपत्ति अच्छी रहती है?
दादाश्री : हाँ, अच्छी रहती है। कोई अड़चन ही नहीं आती। किसी भी तरह का डिफेक्ट ही नहीं आता। क्रोध-मान-माया-लोभ भी उत्पन्न नहीं होते।
प्रश्नकर्ता : ब्रह्मचर्य, वह आत्मसुख के लिए किस तरह हेल्प करता है?
दादाश्री : बहुत हेल्प करता है। ब्रह्मचर्य नहीं हो तो देहबल के कम होते ही सारा मनोबल खत्म हो जाता है, और बुद्धिबल भी खत्म हो जाता है, अहंकार भी ढीला पड़ जाता है। बड़ा डी.एस.पी. हो, लेकिन बूढ़ा हो जाए तो ढीला पड़ जाता है या नहीं? यानी वह उसका तेज कहलाता है, ब्रह्मचर्य!
प्रश्नकर्ता : मतलब ये मन-बुद्धि-चित्त और अहंकार, ये सभी ब्रह्मचर्य से ज़्यादा सुदृढ़ बनते हैं ?
दादाश्री : उसी में से खड़े हुए हैं। अब्रह्मचर्य से वे सभी मर जाते हैं।
प्रश्नकर्ता : ब्रह्मचर्य तो अनात्म भाग में आता है न? दादाश्री : हाँ, लेकिन वह पुद्गलसार है!
प्रश्नकर्ता : तो पुद्गलसार है, वह समयसार को किस तरह से हेल्प करता है?
दादाश्री : पुद्गलसार (प्राप्त) हो जाता है तभी समयसार हो सकता है। मैंने यह ज्ञान दिया, और यह तो अक्रम है इसलिए चल गया। दूसरी जगह पर तो नहीं चलेगा। उस क्रमिक में तो