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विश्लेषण, विषय के स्वरूप का (खं-1-1)
___ हरहाया विचार, वह तो पाशवता कहलाती है। जहाँ देखे वहाँ विचार आता है, वह हरहाया पशु जैसा कहलाता है। उससे तो एक कीले से बाँध देना अच्छा है। स्त्री, वह पुरुष का संडास है और पुरुष, वह स्त्री का संडास है। तो जब संडास जाते हो तब क्या शौचालय में बैठे रहने का मन होता है? उसी तरह यह भी संडास ही है। उसमें क्या मोह रखना?! विषय विषय को भोगता है, वह तो परमाणु का हिसाब है।
जिसे ब्रह्मचर्य पालन करना ही है, उसे तो संयम की खूब परीक्षा करके देख लेना चाहिए। कसौटी पर कस कर देख लेना चाहिए और यदि ऐसा लगे कि फिसल पड़ेगा तो शादी कर लेना अच्छा है। फिर भी वह कंट्रोलपूर्वक होना चाहिए। शादी करनेवाली से कह देना पड़ेगा कि मेरा ऐसा कंट्रोलपूर्वक का है।
ज्ञान किसे अधिक रहता है, दोनों में से?
प्रश्नकर्ता : जो विवाहित हैं, उन्हें ज्ञान देरी से आता है न? और जो ब्रह्मचर्य पालन करते हैं, उन लोगों को ज्ञान जल्दी आता है न?
दादाश्री : नहीं। ऐसा कुछ नहीं है। विवाहित हो और यदि ब्रह्मचर्यव्रत ले तो आत्मा का सुख कैसा है, वह उसे पूर्णतः समझ में आ जाता है। वर्ना तब तक, सुख विषय में से आ रहा है या आत्मा में से आ रहा है, वह समझ में नहीं आता और ब्रह्मचर्यव्रत हो तो, भीतर उसे आत्मा का अपार सुख बर्तता है, मन अच्छा रहता है, शरीर स्वस्थ रहता है!
प्रश्नकर्ता : और जिसने शादी किए बिना ही ब्रह्मचर्यव्रत लिया हो, उसे कैसा अनुभव होता है?
दादाश्री : इसे पूछकर देखो न! बहुत सुख बर्तता है और इसीलिए बहुत बदलाव आ गया है।