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विकारों से विमुक्ति की राह (खं-1-2)
दादाश्री : स्त्री-पुरुष वह कुदरती है और ब्रह्मचर्य का हिसाब वह भी कुदरती है। इंसान जिस तरह से जीना चाहे, वह खुद जैसी भावना करता है, उसी भावना के फल स्वरूप यह जगत् है। ब्रह्मचर्य की भावना पिछले जन्म में की होगी तो इस जन्म में ब्रह्मचर्य का उदय आएगा। यह जगत् प्रोजेक्ट है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन अभी भी मुझे यह बात समझ में नहीं आ रही है कि इंसान को ब्रह्मचर्य पालन क्यों करना चाहिए?
दादाश्री : उसे लेट गो करो आप। ब्रह्मचर्य पालन नहीं करना है। मैं कुछ ऐसे मत का नहीं हूँ। मैं तो लोगों से कहता हूँ कि शादी कर लो। कोई शादी करे तो उसमें मुझे हर्ज नहीं है।
ऐसा है, जिसे सांसारिक सुखों की ज़रूरत है, भौतिक सुखों की जिसे इच्छा है, उसे शादी करनी चाहिए। सबकुछ करना चाहिए और जिसे भौतिक सुख अच्छे ही नहीं लगते और सनातन सुख चाहिए, उसे नहीं।
प्रश्नकर्ता : 'ब्रह्मचर्य पालन करना ही नहीं है' ऐसा मेरा चैलेन्ज नहीं है, लेकिन उस बात की समझ नहीं है।
दादाश्री : ठीक है। बात सही है। आपका चैलेन्ज नहीं है, वह बात सच है, और चैलेन्ज दिया जा सके, ऐसा है भी नहीं। क्योंकि इस दुनिया में किसी ने किस तरह के भाव किए हैं, उसने क्या प्रोजेक्ट किया है, वह क्या हम बता सकते हैं ?। किसी ने पूरी जिंदगी भक्ति का ही प्रोजेक्ट किया होगा तो पूरी जिंदगी भक्ति ही करता रहेगा। किसी ने दान देने का ही प्रोजेक्ट किया होगा तो दान देता रहेगा। किसी ने ऑब्लाइजिंग नेचर का किया हो तो ऑब्लाइज़ करता रहेगा। कोई विकारी नेचर का हो, वह खुद की स्त्री का सुख भोगता है लेकिन अन्य कई लड़कियों का गलत फायदा उठाता है। वे सब भले ही कैसे भी लोग हों लेकिन