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विश्लेषण, विषय के स्वरूप का (खं-1-1)
छू सकता। दीवारों के आरपार निकल जाए, अंदर ऐसा आत्मा है, अनंत सुख का धाम है! ___ इस पैकिंग का हमें क्या करना है? पैकिंग तो कल को सड़ जाएगा, गिर जाएगा, बिगड़ जाएगा, पैकिंग तो किस चीज़ से बना है? यह हम नहीं जानते? फिर भी लोग भूल जाते हैं न? भूल नहीं जाते लोग? लेकिन यह पैकिंग आपको भी भ्रम में डाल दे। हमें, ज्ञानीपुरुष को, यों आरपार दिखता है। कपड़े वगैरह हों फिर भी कपड़ों के अंदर, चमड़ी के अंदर जैसा है वैसा यथावत् दिखता है। फिर राग कैसे होगा? खुद सिर्फ आत्मा को ही देखते हैं और बाकी सब तो कचरा है, सड़ा हुआ माल है। उसमें देखने जैसा क्या है? वहीं पर राग होता है। वही आश्चर्य है न! खुद क्या यह नहीं जानता? जानता है सबकुछ, लेकिन उसे ऐसा समझाया नहीं गया है। ज्ञानियों ने पहले से ही माल देखा हुआ है। इसमें नया क्या है? और फिर बीवी के साथ सो जाता है। अरे, इस मांस को ही दबाकर सो जाता है? लेकिन भान नहीं है न। उसी का नाम मोह है न! हमें निरंतर जागृति रहती है, एवरी सेकन्ड जागृति रहती है, इसलिए हम जानते हैं कि निरा मांस ही है यह सब।
अब ऐसी बात कोई करता नहीं है न? क्योंकि लोगों को विषय पसंद है। इसलिए यह बात करता ही नहीं है न कोई। जो निर्विषयी है, वही यह बात कर सकते हैं, वर्ना ऐसा खुल्लम खुल्ला कौन कहेगा? अंत में तो यह सब छोड़े बिना चारा ही नहीं है। आप हम से कहो कि मुझे ब्रह्मचर्यव्रत लेना है। तो हम 'हाँ' कहते हैं। क्यों? कि भई बहुत अच्छा है, खरा सुखी होने का मार्ग यही है, यदि आपका उदय हो तो। वर्ना शादी कर लो। शादी करके अनुभव लो। एक बार अनुभव हो गया तो दूसरे जन्म में मुक्त हो जाएगा।
प्रश्नकर्ता : कोई-कोई मुक्त हो जाता है, नहीं तो छूटना मुश्किल है।