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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) सच्चा आम का भोग, विषय की तुलना में
यह जलेबी नीचे धूल में गिर गई हो। फिर वह खाने के लिए दे तो खाओगे या नहीं? नहीं। क्यों? यों मुँह में तो मीठी लगती है, फिर भी? देखकर ही मना कर देगा न? यों अच्छा आम हो लेकिन खट्टा निकले तो? तब भी कहेगा 'नहीं। नहीं खाना।' मतलब ये लोग इतना सब देखकर खाते हैं। जीभ मना करे तो भी फेंक देता है, सिर्फ आँखें मना करें तो भी मना कर देता है, सिर्फ नाक मना करे तो भी छोड़ देता है। यानी कि इसमें जब पाँचों इन्द्रियाँ खुश हो जाएँ, तभी उस चीज़ को खाता है लेकिन सिर्फ विषय ही ऐसा है कि किसी भी इन्द्रिय को वह अच्छा ही नहीं लगता। फिर भी 'उसे' विषय में मज़ा आता है, वह भी आश्चर्य है न!
पाँच इन्द्रियों के विषय में सिर्फ जीभ का विषय ही सचमुच का विषय है। बाकी सब तो बनावट है। शुद्ध विषय हो तो सिर्फ यही एक है! फर्स्ट क्लास हाफूस के आम हों, तो कैसा स्वाद आता है? भ्रांति में यदि कोई शुद्ध विषय हो तो वह यही है। शुद्ध आहार मिलता हो और उसका स्वाद, बेस्वाद नहीं हो तो वह विषय स्वीकार करने योग्य है। है तो यह भी कल्पित, लेकिन सबसे ऊँचा कल्पित है। इस के बारे में सोचने से घृणा नहीं होती और विषय में तो सोचते ही घृणा होती है।
विषयों में भोग है ही नहीं, लेकिन मानते हैं कि यह भोग है। भोग में तो पाँचों इन्द्रियाँ खुश रहती है। यह आम, वह भोग कहलाता है। उसकी सुगंध अच्छी होती है, स्पर्श भी अच्छा होता है, स्वाद भी आता है, आँखों को यों अच्छा लगता है। जबकि इस विषय में तो कुछ है ही नहीं। यह तो फल्स पैरडाइस है। विषय में कोई इन्द्रिय खुश नहीं होती। आँखें भी अंधेरा ढूँढती हैं। आम देखने के लिए आखें अंधेरा ढूँढती हैं? नाक कहती है कि (नाक) बंद कर दो? लोग बदबू मारते होंगे क्या? दो दिन