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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
के बारे में समझने जाए तो बुद्धि विषय को लेट गो नहीं करेगी। ये बुद्धिमान लोग लेट गो करते हैं, इसका क्या कारण है? लोकसंज्ञा के अनुसार चलते हैं, इसलिए उस तरफ का आवरण नहीं टूटा।
एक जन ने कहा कि बुद्धिपूर्वक में क्या हर्ज है? तब मैंने कहा, बुद्धिपूर्वक की चीजें उजाले में करनी होती है। सीक्रेसी(गप्त) नहीं होती। हज़ार लोगों की मौजूदगी में बैठकर जलेबी खा सकते हैं? जलेबी में हर्ज नहीं है न? उसे शर्म नहीं आती?
प्रश्नकर्ता : नहीं। शर्म नहीं आती, रौब से खाई जा सकती
है!
दादाश्री : यानी विषय के बारे में यदि कोई सोचे न, यदि सोचना आए, तो वह विषय की ओर कभी जाएगा ही नहीं। लेकिन सोचना भी नहीं आता न? विषय, वह अजागृति है। विषय पुसाए ही कैसे? जो चीजें सोचने पर अच्छी नहीं लगें, उसी चीज़ का संबंध कैसे पुसाए?
निरी गंदगी दिखे विषय में अब कितने ही लोग चारित्र (दीक्षा) लेने लगे हैं। क्योंकि विषय में इतनी गंदगी है कि जिस पर अगर निबंध लिखना हो तो निबंध लिखने में भी घिन आ जाए। यह तो ठीक है, एक तरह की हैबिट हो गई है। मूलतः अज्ञानता और मूर्छा की वजह से गंदगी में हाथ डाला। अब भान में आने के बाद क्या घिन नहीं आएगी? इस बिल्कुल ही गंदगीवाले सुख को छोड़ देना है। इसे तो गंदगी देखकर ही छोड़ देना है। यदि इस विषय का सुख छोड़ दे तो पूरी दुनिया का मालिक बन जाएगा। वास्तव में तो वह सुख है ही नहीं। इस जलेबी में सुख है, श्रीखंड में सुख है, ऐसा कह सकते हैं, उसके लिए मना नहीं कर सकते लेकिन इस विषय में तो सुख है ही नहीं।
मुझे तो इस विषय में इतनी गंदगी दिखती है कि मुझे यों