________________
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
है। इस विषय पर घिन नहीं आती न? लेकिन वह तो अन्य सभी गंदी चीज़ों से भी ज्यादा बुरा है। फिर भी लोगों को इसका पता नहीं चलता। डेवेलपमेन्ट की कितनी कमी है। पकौड़ों में पसीना गिर रहा है, ऐसा देखते हैं फिर भी खाते हैं, तो यह डेवेलपमेन्ट कितना कच्चा है? क्योंकि इस गंदगी को समझा ही नहीं। यह शरीर यों सुंदर दिखता है लेकिन यदि बनियान को निकालकर मुँह में डालो तब पता चलेगा कि वह कैसा है! वह कैसा लगता है? खारा लगता है न? बदबूदार! जिसके पास खड़े रहने पर भी बदबू आती है, वहाँ उसके प्रति विषय कैसे खड़ा हो सकता है? यह कितनी बड़ी भ्रांति है!!!
खरा सुख किस में? इंसान को रोंग बिलीफ है कि विषय में सुख है। अब अगर विषय से भी ऊँचा सुख मिल जाए तो विषय में सुख नहीं लगेगा! विषय में सुख नहीं है लेकिन देहधारी को व्यवहार में चारा ही नहीं। बाकी जान-बूझकर गटर का ढक्कन कौन खोलेगा? विषय में सुख होता तो चक्रवर्ती इतनी सारी रानियाँ होने के बावजूद सुख की खोज में नहीं निकलते! इस ज्ञान से ऐसा ऊँचा सुख मिलता है। फिर भी इस ज्ञान के बाद तुरंत विषय चले नहीं जाते, लेकिन धीरे धीरे चले जाते हैं। फिर भी खुद को सोचना तो चाहिए कि यह विषय कितना गंदगीवाला है!
पुरुष को ऐसा दिखे कि स्त्री है, तो यदि पुरुष में रोग होगा तभी उसे ऐसा दिखेगा कि 'स्त्री है'। पुरुष में रोग नहीं होगा तो स्त्री नहीं दिखेगी।
ज्ञानियों की दृष्टि आरपार होती है। जैसा है वैसा दिखता है। वैसा दिखे तो फिर विषय रहेगा? उसे कहते हैं, ज्ञान। ज्ञान मतलब आरपार, जैसा है वैसा दिखना। यह हाफूस का आम हो तो उस विषय के लिए हम मना नहीं करते। उसे यदि काटे तो खून