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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
लाकर दे दिए तो बीवी आसक्ति में ही खुश और यदि नहीं लाकर दिए तो, 'आप ऐसे हो, आप वैसे हो', फिर झगड़े नहीं होते? मतभेद नहीं होते? इसमें कौन सा सुख है जो पड़े हुए हो? क्या माना है तुमने? अनंत जन्मों से भटक रहे हो, तो अभी भी क्या तुम्हें भटकने का शौक है? क्या हुआ है तुम्हें?
वीतराग भगवान के भक्तों को भी चिंता? जब शास्त्र पढ़ता है, उतने समय तक थोड़ी अंदर ठंडक रहती है। उसमें भी फिर पढ़ते-पढ़ते याद तो आ ही जाता है कि आज कारखाने में तो बारह सौ का नुकसान हो गया है। वह फिर उसे चुभता (कचोटता) है! पूरे दिन चुभन, चुभन और चुभन। भीतर यह कचोटता है और बाहर मकोड़े, मच्छर जो भी हों, वे काटते हैं। रसोई में बीवी काटती है। मैंने एक जने से पूछा, 'क्यों तंग आ गए हो?' तब उसने कहा कि 'यह पत्नी नागिन की तरह काटती है।' कुछ लोगों को ऐसी भी पत्नियाँ मिलती हैं न? पूरे दिन 'आप ऐसे और आप वैसे' करती रहती है, वह शांति से खाने भी नहीं देती बेचारे को! अब वह औरत कौन सा सुख दे देनेवाली है? वह क्या ‘परमानेन्ट' सुख देगी? तो क्यों खुद दबा हुआ बैठा रहता है? विषय-भूखा है इसलिए। वर्ना निर्विषयी को डरानेवाला कौन? सिर्फ विषय के लिए पड़े रहना और खुद की स्वतंत्रता खो देनी? बीवी-बच्चों का जंजाल
और वह अनंत जन्म बिगाड़ देता है। जो इसमें से कुदरती रूप से छूट गया, उसकी तो बात ही क्या करनी?
पूरी दुनिया की है वह जूठन बाकी, विषय भोग तो निरी जूठन ही है। पूरी दुनिया की जूठन है। आत्मा का कहीं ऐसा आहार होता होगा? आत्मा को बाहर की किसी भी चीज़ की ज़रूरत नहीं है, निरालंब है। किसी भी अवलंबन की उसे ज़रूरत नहीं है। परमात्मा ही है खुद। निरालंब अनुभव में आ जाए तो परमात्मा ही हो गया! उसे कुछ भी नहीं